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[७] सब से अंतिम विज्ञान 'मैं, बावा और मंगलदास'
से कोई शिकायत नहीं और एतराज नहीं तो फिर अब सोने में क्या हर्ज है? तब, नहीं ब्रह्मा बन बैठा ओढ़कर, योजना बनाने लगा, सुबह ऐसा कर दूँगा, परसों ऐसा करूँगा, वैसा करूँगा' । इस तरह योजना गढ़ने
लगा ।
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योजना गढ़ने लगा तो ब्रह्म में से बन गया ब्रह्मा और जब वे योजनाएँ अमल में आती हैं तब भ्रमित हो जाता है । तब कहता है, 'मैं चंदूभाई हूँ, इनका साला हूँ, इनका मामा हूँ' । यों भ्रमित हो गया ! वही मैं है, वही बावा और वही मंगलदास है ! वही ब्रह्म, वही ब्रह्मा और फिर वही भ्रमित हो जाता है !
पर्सनल, इम्पर्सनल और एब्सल्यूट
प्रश्नकर्ता : जो सारे महान तत्त्व चिंतक हैं, उन्होंने जो तीन शब्द दिए हैं पर्सनल, इम्पर्सनल और एब्सल्यूट, वे समझाइए ।
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दादाश्री : इसमें क्या समझाना ? मैं बावा और मंगलदास । मंगलदास-पर्सनल, बावा - इम्पर्सनल और जो 'मैं' है, वह एब्सल्यूट है।
प्रश्नकर्ता : क्या बात है! बस समझ में आ गया, ठीक से । मैं, बावा और मंगलदास ।
दादाश्री : जो मंगलदास है, वह पूरा ही पर्सनल कहलाता है। जो बावा है, वह इम्पर्सनल कहलाता है, वह इगोइज़म कहलाता है और जो 'मैं' है वह एब्सल्यूट है। जिस एब्सल्यूट में सिर्फ 'मैं' ही रहता है, उसे एब्सल्यूट कहते हैं। यह आइ विदाउट माइ इज़ एब्सल्यूट ।
'आइ विद माइ', वह मंगलदास है, वह पर्सनल है और जो उससे आगे गए हैं, वे 'आइ विद नॉट माइन' तो इम्पर्सनल भी हो जाते हैं । अतः 'आइ विद माइ, आइ विद नॉट माइन' ( व्यवहार में मेरा है लेकिन निश्चय में मेरापन नहीं है) और 'आइ विदाउट माइ' बस इतना ही सॉल्यूशन है इसका।
बावा का महत्व है। दूसरे सामान्य लोग और खुद में, दोनों में से