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आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
दादाश्री : जैसे-जैसे कर्म छूटते जाते हैं वैसे-वैसे फाइल का निकाल होता जाता है और वह निकाल कौन करता है ? व्यवस्थित।
प्रश्नकर्ता : व्यवस्थित निकाल करता है। ठीक है। अर्थात् समय आने पर सबकुछ मिलता जाएगा तब निकाल होता जाएगा।
दादाश्री : इफेक्ट का निकाल हो ही रहा है। कॉज़ेज़ उत्पन्न नहीं होते।
'मैं' और 'बावा' तीन सौ साठ पर एक हैं
मैं जब ऐसा पूछता हूँ कि 'कौन बोला?' तो वे कहती हैं, 'नीरू बोली'। फिर इस पर से उन्हें जुदापन का ज्ञान हो गया और फिर नीरू बहन प्रतिक्रमण करती हैं।
इसी प्रकार से फिर आपको मुझसे कहना है कि 'ये चंदूभाई बोले!' तो फिर ऐसा कहा जाएगा कि अपना ज्ञान हाज़िर रहा। यहाँ पर इसी तरह से बोलने का रिवाज है उसे हम 'बावा जी' कहते हैं। मैं, बावा और मंगलदास! मंगलदास कुछ हद तक है, और उसके बाद बावा
है।
प्रश्नकर्ता : कुछ हद तक मैं ?
दादाश्री : नहीं! तीन सौ छप्पन पर यह बावा है, सत्तावन, अठावन, उनसठ। तो उनसठ तक बावा माना जाता है। साठ होते ही 'मैं' हो जाता है। अतः 'मैं' तो शुद्धात्मा ही हूँ लेकिन यह भी 'मैं' बन गया। दोनों ही तीन सौ साठ और तब तक बावा है।
यहाँ पर लिखिए (दादाश्री लिखवाते हैं), बाइ रिलेटिव, ही इज़ इनसाइड टू हंड्रेड। बाइ रिलेटिव व्यू पोइन्ट का मतलब है चंदूभाई। बाइ रियल ही इज़ ऑन थ्री हंड्रेड थ्री।
डिग्री किसकी है? कितनी? प्रश्नकर्ता : आपने कहा न कि चंदूभाई 200 डिग्री पर हैं और