Book Title: Aptvani 13 Uttararddh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 538
________________ [७] सब से अंतिम विज्ञान - 'मैं, बावा और मंगलदास' ४५७ दादाश्री : हो ही नहीं सकता न, जानेगा ही नहीं न! प्रश्नकर्ता : आत्मा है और बाकी सब पुद्गल है। बस! दादाश्री : अंत तक यही है और जब जान लेते हैं तब ऐसा बताते नहीं है। ऐसा तो मैंने बताया ही नहीं कभी, यह तो आज ही बताया है क्योंकि हम संपूर्ण दशा में रहते हैं। अकेले में 360 पर। दो में नहीं रहते। 356 के दर्शन होते हैं और 360 पर हम रहते हैं इसीलिए दर्शन करने वालों को बहुत फायदा है! अभी बात करते समय इतना फायदा नहीं होता। तमाम शास्त्रों का सार, मैं बावा... अब यह विज्ञान शास्त्रों में कैसे मिल सकेगा? किसी भी जगह पर नहीं हो सकता। यह तो जब दस लाख सालों में प्रकट होता है, तब ज़ाहिर हो जाता है। केवलज्ञान जानने के बाद बोलना नहीं रहता है। खटपटिया नहीं रहते न? जानते हैं लेकिन खटपट नहीं करते। जो जानते नहीं हैं, वे खटपट कैसे करेंगे? और मैं तो जानता हूँ और खटपट भी करता हूँ और बुखार का भी पूछता हूँ, कब से बुखार आ रहा है? और मैं जानता भी हूँ कि पूछने वाला कौन है, बुखार किसे आ रहा है। वह सब जानता हूँ ! बावा के बारे में सुना है आपने? मेरा पूरा ही ज्ञान बाहर आ गया Thic प्रश्नकर्ता : सब को अंतिम ज्ञान मिल गया। दादाश्री : हाँ, मिल गया। वह तो अगर किसी दिन निकल जाए तो वास्तव में निकल जाता है। ऐसी बरसात होती है, एक ही बरसात से उग निकले उतनी बरसात होती है। चारों महीने, एक ही बरसात से उग जाते हैं, नहीं तो, चारों महीने बरसात हो तो भी फसल न उगे, पानी मीठा नहीं है न! मीठी बरसात तो एक ही बार होती है। यह भी वैसा ही हुआ है।

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