Book Title: Aptvani 13 Uttararddh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 537
________________ आप्तवाणी - १३ (उत्तरार्ध) हैं और अंबालाल पटेल हैं । मैं, ज्ञानी व अंबालाल नहीं मिलेंगे। यह योग नहीं मिलेगा, बाकी सब योग मिल जाएँगे । भगवान खुद हाज़िर नहीं होंगे। ये जो हो गए सो हो गए। मैं, पूरे ब्रह्मांड का भगवान यह कह रहा हूँ, उसकी गारन्टी देता हूँ। 'जो जितना कनेक्शन कर लेगा, वो उसके बाप का।' ४५६ वास्तव में ये तीन विभाग तो मैं कर देता हूँ । मैं, ज्ञानी और अंबालाल, तीन विभाग कर देता हूँ और उसके पीछे करुणा है। वास्तव में दो ही भेद हैं दादा भगवान और अंबालाल, दो ही हैं लेकिन तीन करने का कारण यह है कि दूषमकाल के जीव हैं और शंकालु हैं। बेकार की शंकाओं से बल्कि इनका बिगड़ेगा । अतः उन्हें जुदा कर दिया, ताकि शंका ही खड़ी नहीं हो न ! - इससे उसे ठंडक रहेगी। हाँ ! इसलिए ताकि अब उसका पागलपन खड़ा न हो। वास्तव में दो ही हैं ये । कृपालुदेव ने तो कहा है, 'ज्ञानीपुरुष, वे देहधारी परमात्मा ही हैं' लेकिन ये तीन विभाग बना दिए हैं। इसका कारण है, उसके पीछे की करुणा । ताकि यहाँ से भाग न जाए, यहाँ आया हुआ भटक न जाए। खुला रहस्य अक्रम विज्ञान के माध्यम से यह तो जितनी बात निकले उतना ही ठीक, वर्ना तो निकले ही नहीं न। दृष्टि के बिना नहीं निकल सकती कभी भी । यह सब तो मैं आपके लिए कह रहा हूँ । प्रश्नकर्ता : लेकिन अक्रम विज्ञान ने अंतर का पूरा रहस्य ज्ञान खोल दिया है। दादाश्री : कभी खुला ही नहीं था । इसमें तो अंत तक एक-एक कदम चले हैं। प्रश्नकर्ता: इन शास्त्रों में या कोई दूसरा अंदर की ऐसी बातें नहीं बता सका है।

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