Book Title: Aptvani 13 Uttararddh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 527
________________ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) है, ‘वही हूँ न मैं'। इसलिए अभी भटकना पड़ा। और जो कहता है कि 'मैं शुद्धात्मा हूँ' तो वह प्योर हो जाता है, फिर कोई परेशानी नहीं। खुद प्योर ज्ञान को ही, 'मैं हूँ', ऐसा कहता है। प्योर ज्ञान, थ्री हंड्रेड सिक्स्टी डिग्री पर से ही ‘मैं हूँ', वह मान्यता है । वहाँ से जितना आगे आएगा, तीन सौ पैंतालीस डिग्री पर आ जाए तभी से वह ज्ञानीपुरुष कहलाता है । ४४६ प्रश्नकर्ता : अब बावा की शुद्ध स्थिति होना, उसमें मंगलदास चाहे कैसा भी हो सकता है ? दादाश्री : मंगलदास से हमें क्या लेना-देना? मंगलदास की डिज़ाइन तो बदलेगी ही नहीं ! इफेक्ट हो गया है। डिज़ाइनेबल (अन्चेन्जेबल) इफेक्ट हो चुका है । वह शुरुआत में जन्म के पहले से हो चुका है, वह बदलेगा नहीं । यह बदल सकता है। प्रश्नकर्ता : बावा के पास जितना अज्ञान है, उतना ही उस पर असर होता है न ? दा.दाश्री : उतना ही । प्रश्नकर्ता: और अगर वह विज्ञान में आ जाए तो असर नहीं होने देगा ? दादाश्री : तीन सौ साठ वाले को तो होगा ही नहीं । प्रश्नकर्ता : नहीं होगा। अतः वास्तव में ऐसा है कि मंगलदास का असर बावा पर नहीं हो सकता । इसकी (बावा की) जितनी नासमझी है उतना असर मंगलदास पर होता है । दादाश्री : वर्ना असर होगा ही नहीं । प्रश्नकर्ता : ठीक है । और आप जो बात कर रहे हैं न, आप उस प्योर ज्ञान की बात कर रहे हैं कि बावा को एक भी असर स्वीकार नहीं करना है। दादाश्री : फिर ?

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