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आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
दादाश्री : इसका अर्थ इतना ही है कि मुझे तीन सौ साठ का था, लेकिन मुझे पचा नहीं और तीन सौ छप्पन पर आकर कांटा रुक गया। आपको भी नहीं पचा है। वह तीन सौ दस पर है अभी तक, तीन सौ दस-बीस पर है। आपको नहीं पचा है न? तीन सौ साठ दिया था लेकिन तीन सौ बीस पर आ गया, किसी का तीन सौ दस पर आ गया, लेकिन तीन सौ से ऊपर है सब का। जबकि थे दो सौ पर। सौ, एक सौ दस एकदम से पार कर लिया है। ये निर्मल लोग थे इसलिए यह मिल गया, नहीं तो दादा भगवान कहाँ से मिलते? थोड़ा-बहुत भी निर्मल हो, ज़्यादा नहीं लेकिन अगर थोड़ा बहुत भी निर्मल हो तो दादा भगवान प्राप्त हो जाएंगे, नहीं तो दादा भगवान प्राप्त नहीं होंगे!
इतना फर्क है, ज्ञानी और भगवान में प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा! ज्ञानी और भगवान में क्या फर्क है?
दादाश्री : ज्ञानी और भगवान में इतना ही फर्क है कि ज्ञानी समझ सकते हैं, सभी कुछ देख सकते हैं, लेकिन जान नहीं सकते। ये जो दिखाई देते हैं न वे तो भादरण के पटेल हैं और मैं तो ज्ञानीपुरुष हूँ और दादा भगवान अलग हैं, वे तो परमात्मा ही हैं चौदह लोक के नाथ हैं।
मेरी तीन सौ साठ डिग्री पूर्ण नहीं हुई हैं और तीन सौ छप्पन पर रुक गया है इसीलिए अंदर जो प्रकट हुए हैं उन भगवान में और मुझमें जुदापन है। यदि मेरा तीन सौ साठ हो गया होता न, तो हम दोनों एकाकार हो जाते। लेकिन अभी यह जुदापन है क्योंकि इतना यह निमित्त होगा न, लोगों का कार्य करने का, इसलिए जुदापन है। अतः जितने समय तक हम भगवान के साथ एक रहते हैं, अभेद भाव में रहते हैं, उतने समय तक संपूर्ण स्वरूप में रहते हैं और जब वाणी बोलते हैं तब अलग (जुदापन) हो जाता है।
प्रकट हुआ चौदह लोक का नाथ प्रश्नकर्ता : आप कहते हैं कि 'चौदह लोक का मालिक प्रकट हो गया है', इसका क्या मतलब है?