Book Title: Aptvani 13 Uttararddh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 532
________________ [७] सब से अंतिम विज्ञान - 'मैं, बावा और मंगलदास' ४५१ इसीलिए तो सब को दादा भगवान दिखाई देते हैं न! नहीं तो दादा भगवान दिखेंगे ही नहीं न! चौबीस घंटे दादा भगवान का ध्यान रहता है, वह किसलिए? आज तक कोई भी इस तरह से याद नहीं रहे। सभी का स्मरण करना पड़ता है, ये अपने आप ही आ जाते हैं। ये तो विस्मृत ही नहीं होते जबकि बाकी सब का स्मरण तो याद करना पड़ता है। प्रश्नकर्ता : यह तो अपने आप ही शुरू हो जाता है। दादाश्री : अपने आप ही चलता है। लोग तो कहते हैं न कि 'यह क्या आश्चर्य है ?! हम न चाहें फिर भी वे हमारे ध्यान में रहते ही हैं। तब ज्ञान प्रकट होता जाएगा प्रश्नकर्ता : तब तो ऐसा कहलाएगा न कि हम में भी केवलज्ञान स्वरूप ही हैं? दादाश्री : वे ही हैं न! प्रश्नकर्ता : तो फिर वह ज्ञान बाहर क्यों नहीं निकलता? दादाश्री : बाहर कैसे निकलेगा लेकिन? अभी तो मीठा लगता है न! जितना मीठा लगता है, उतना ही ज्ञान पर आवरण आता है। __ ये डिस्चार्ज के रस (रुचि) टूटेंगे। जैसे-जैसे टूटेंगे वैसे-वैसे वह ज्ञान प्रकट होता जाएगा। दिया तो है केवलज्ञान स्वरूप, लेकिन मैंने कहा न कि मुझे भी नहीं पचा है और आपको भी नहीं पचेगा। और केवलज्ञान के बिना कभी भी चिंता जा नहीं सकती। क्रमिक मार्ग में कोई ऐसे ज्ञानी नहीं हुए हैं जो चिंता रहित हों। अंतिम अवतार में, जिनका चरम शरीर होता है, उनकी चिंता जा चुकी होती है। प्रश्नकर्ता : आप कहते हैं, 'हम में तीन सौ छप्पन डिग्री का ज्ञान है, लेकिन हमने आप लोगों को तो तीन सौ साठ डिग्री का दे दिया है'। इसका क्या अर्थ है ?

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