Book Title: Aptvani 13 Uttararddh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 529
________________ ४४८ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) दादाश्री : वह समझ में आता है। वह दर्शन में आता है, समझ में आया इसका मतलब दर्शन में आ गया। यदि दर्शन में नहीं आया है तो उसे अदर्शन कहा जाता है। प्रश्नकर्ता : यह मंगलदास का पद है, यह बावा का पद है, ऐसा कौन समझता है? दादाश्री : 'मैं'। प्रश्नकर्ता : प्रज्ञा के रूप में? दादाश्री : हाँ। प्रश्नकर्ता : ये बाहर की, व्यवहार की अवस्थाएँ वगैरह सब कौन देखता है? वह सारा मंगलदास देखता है या बावा? दादाश्री : मंगलदास देखता है लेकिन यदि देखने वाले बावा की इच्छा होगी तभी दिखाई देगा, नहीं तो नहीं दिखाई देगा। प्रश्नकर्ता : उस बावा की जिसमें इच्छा है, इन्टरेस्ट है। दादाश्री : देखने वाला (बावा) होना चाहिए। ये तो चश्मे हैं। मंगलदास चश्मे जैसा है। प्रश्नकर्ता : अर्थात् यह सब देखने वाला बावा है? दादाश्री : हाँ! देखने वाला बावा है। प्रश्नकर्ता : तो फिर अच्छा-बुरा करने वाला भी बावा है? जो अच्छा-बुरा करता है, वह बावा है ? दादाश्री : बस! नहीं तो और कौन? प्रश्नकर्ता : और जो बावा को जानता है कि बावा ने यह सब किया, वह हम खुद, 'मैं'। दादाश्री : 'मैं' यह सभी कुछ जानता है। 'मैं' मंगलदास को भी जानता है और इस बावा को भी जानता है, सभी को जानता है।

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