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आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
वह कपड़े वाला बावा नहीं है, असल बावा नहीं है। असल बावा तो जब ज्ञान प्राप्त होता है तभी से असल बावा ।
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प्रश्नकर्ता : ड्रेस वाला बावा ?
दादाश्री : ड्रेस वाला । फुल ड्रेस । तब अगर तारीफ की जाए तो लोग ऐसा कहते हैं कि, 'नहीं भाई, बावा जी आए हैं'। वह बावा (बिना ड्रेस वाला) शायद कहे या न भी कहे। वह अपने घर में बावा है।
हमारा बावा अलग है। इस मज़दूर का भी बावा कहा जाएगा। यहाँ का मज़दूर, इन्डिया का, वह बावा है क्योंकि वह समझता है कि 'मेरी स्त्री न जाने कौन से जन्म की बैरी है, कौन से जन्म में बैर बाँधा है, परेशान-परेशान कर दिया है मुझे' । अभी तक भूला नहीं है पिछले
जन्म का ।
मंगलदास को, बावा को, सभी को जो जानता है वह 'मैं' है । जो तीन सौ साठ डिग्री वाला ज्ञानी है, उसे 'मैं' कहता हूँ लेकिन ज्ञानी, वह 'मैं' नहीं है।
प्रश्नकर्ता : यह बावा 'मैं' नहीं है ?
दादाश्री : नहीं, 'ज्ञानी' भी 'मैं' नहीं हूँ लेकिन 'मैं' सभी को जानता हूँ। जो तीन सौ साठ डिग्री वाला 'ज्ञानी' है, उसे भी जानता हूँ।
प्रश्नकर्ता: ऐसा कौन कहता है ? 'मैं' ?
दादाश्री : 'मैं' कहता है ।
प्रश्नकर्ता: और बावा ?
दादाश्री : जो ऐसा कहता है कि 'मैं तीन सौ साठ डिग्री वाला ज्ञानी हूँ'।
प्रश्नकर्ता : तीन सौ साठ डिग्री बोलता है ?
दादाश्री : हम नहीं कहते, 'बावा' बनकर, 'मैं तीन सौ छप्पन डिग्री वाला ज्ञानी हूँ?'