Book Title: Aptvani 13 Uttararddh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 518
________________ [७] सब से अंतिम विज्ञान 'मैं, बावा और मंगलदास' डिग्री पर हूँ', तो वह बावा है । जहाँ शब्द नहीं हैं, आवाज़ नहीं है, तो फिर वहाँ पर बावा नहीं है, वह मूल है। ४३७ प्रश्नकर्ता : अर्थात् खुद को यह ध्यान आने के बाद में कि 'मैं शुद्धात्मा हूँ', वह बावा कहलाता है या उससे पहले भी ? दादाश्री : सभी तरह से बावा ही है, उसके पहले से । प्रश्नकर्ता : उसके पहले से ही ? पुनर्जन्म समझने लगे तभी से ? दादाश्री : 'मैं कर्ता हूँ' ऐसा भान होने के बाद, 'मैं कर रहा हूँ' और मैं अपने कर्म भुगत रहा हूँ, तभी से बावा है । प्रश्नकर्ता : आपने एक बार कहा था कि 'बावा का जन्म हमारे ज्ञान देने के बाद ही होता है । तब तक बावा नहीं है ' । दादाश्री : नहीं, बावा का जन्म तो जब से यह जानने लगे कि मैं कर्ता हूँ और मुझे मेरे कर्म भुगतने पड़ेंगे, तभी से बावा बन जाता है। लेकिन बावा की एक्ज़ेक्ट ड्रेस नहीं है। एक्ज़ेक्ट ड्रेस तो ऐसा भान होने के बाद कि 'मैं शुद्धात्मा हूँ', तब एक्ज़ेक्ट ड्रेस में आता है। वास्तव में यहीं से बावा कहेंगे, बिना ड्रेस वाले को भी बावा कहेंगे। फिर 'मैं मंगलदास हूँ, विलियम हूँ, सुलेमान हूँ', वह सब मंगलदास है क्योंकि वह खुद (माना हुआ 'मैं' ) ऐसा समझता है कि भगवान करते हैं और मैं तो सुलेमान हूँ। प्रश्नकर्ता : मुझे देहाध्यास रहता है, उससे मुक्त होना है, ऐसा जिसे भान हुआ तभी से वह बावा है। दादाश्री : देहाध्यास शब्द का भान भी नहीं है फिर भी यदि, 'मैं कर्ता हूँ', ऐसा रहे तो वह बावा है I प्रश्नकर्ता : तो वह बावा नहीं कहलाएगा ? दादाश्री : वही बावा है। बावा की शुरुआत कही जाएगी। देहाध्यास का भान हो जाए, तब तो फिर वह बड़ा, बड़ा बावा, रौब वाला लेकिन

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