Book Title: Aptvani 13 Uttararddh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 524
________________ [७] सब से अंतिम विज्ञान 'मैं, बावा और मंगलदास' दादाश्री : ज्ञान हमेशा चेन्जेबल ही होता है। चाहे बावा के पास हो या किसी के भी पास हो । ज्ञान अर्थात् अज्ञान और अज्ञान एक प्रकार का ज्ञान है। अंत में सभी का समावेश ज्ञान में ही हो जाता है। अज्ञानज्ञान, अर्धदग्ध ज्ञान, अर्धदग्ध अज्ञान सभी का समावेश ज्ञान में ही हो जाता है और ज्ञान ही इन सब को बदलता है और जो प्योर ज्ञान है, वह तो भगवान ही है। बाकी सब जगह पर इससे निम्न है, उस कारण से भेद पड़ गए । यह बावा, ज्ञान भी बावा का है, अज्ञान भी बावा का है। ४४३ - कौन सी डिग्री पर, ज्ञानी पद व भगवान पद ? हम ज्ञानी हैं। ज्ञानियों में क्या होता है ? ज्ञानी क्यों कहलाते हैं ? अस्सी प्रतिशत, नब्बे प्रतिशत, पचानवे, निन्यानवे प्रतिशत तक ज्ञानी और सौ प्रतिशत पर खुद । प्रश्नकर्ता : आपने कहा है न कि तीन सौ उनसठ तक बावा है और तीन सौ साठ हो जाने पर बावा खत्म। दादाश्री : फिर तो भगवान बन जाता है ! तीन सौ उनसठ तक वह ज्ञानी है। तीन सौ पैंतालीस से लेकर लगभग तीन सौ उनसठ तक वह ज्ञानी कहलाता है लेकिन यह सब बावा में ही आता है । हमने सभी स्टेशन देखे हैं । आपको भी सभी स्टेशन देखने पड़ेंगे। मैं केवलज्ञान स्वरूप, ऐसा शुद्धात्मा हूँ । हमें दादा भगवान के दर्शन करने हैं (शीशे में देखकर बोल रहे हैं) ये जो देहधारी दिखाई दे रहे हैं, वे दादा भगवान हैं ! ऐसा है न तीन सौ पचपन डिग्री से तीन सौ साठ डिग्री तक सब भगवान ही कहलाते हैं ! प्रश्नकर्ता : अतः इस तरफ बावा तीन सौ पैंतालीस या तीन सौ पचास हो और दूसरी तरफ 'मैं' तीन सौ साठ हो, तो क्या इस प्रकार से एट ए टाइम दोनों हो सकते हैं ? दादाश्री : है न! हमारा वही है।

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