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आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
दादाश्री : शरीर का जवान होना, मूलतः वह सारा फिज़िकल है, जो फिज़िकल भाग रहता है, वह तो चंदूभाई का है। वही चंदूभाई है लेकिन जो बावा है, वह धीरे-धीरे बढ़ता जाता है।
प्रश्नकर्ता : जब से आपने ज्ञान दिया तभी से बावा का जन्म हुआ। तब तक तो चंदूभाई ही था।
दादाश्री : हाँ। वर्ना तब तक तो चंदूभाई ही था। फिर बावा बनने लगा। जैसे कोई व्यक्ति है तो ब्राह्मण और यदि तीस-चालीस साल तक शादी करने का कोई ठिकाना न पड़े और उसे किसी जगह पर मंदिर के महंत की तरह रखा जाए और वह महाराज कहलाने लगे तो तभी से बावा बनता है। अर्थात् आप चंदूभाई ही थे, मैं मिला, मैंने आपसे कहा, 'आप शुद्धात्मा हो'। तभी से बावा बने। लोग मंदिर के बावा बनते हैं और हम इसमें बावा बन गए।
प्रश्नकर्ता : ठीक है, बस। अब बावा से कहते रहना है, 'तू शुद्धात्मा है, तू शुद्धात्मा है'। बावा को यही रटते रहना है तो फिर धीरेधीरे बावा तीन सौ साठ तक पहुँच जाएगा।
दादाश्री : नहीं। ऐसा रटते रहने की ज़रूरत नहीं है। आपको तो 'मैं शुद्धात्मा हूँ', ऐसा ही बोलना है। जब शुद्धात्मा वर्तन में आएगा तब बावापन छूट जाएगा और जब तक वह वर्तन में नहीं आया है, तब तक बावा है। श्रद्धा में 'मैं शुद्धात्मा हूँ' लेकिन वर्तन में नहीं है इसलिए बावा है। जब वह वर्तन एक्जेक्ट हो जाएगा तो वापस श्रद्धा वगैरह सबकुछ एक्जेक्ट।
प्रश्नकर्ता : करेक्ट । हाँ, वर्तन में 'मैं' बावा रूपी है, श्रद्धा में 'मैं शुद्धात्मा हूँ।
दादाश्री : उल्टी समझ से सबकुछ उल्टा हो जाता है।
प्रश्नकर्ता : बाइ रियल व्यू पोइन्ट वी आर ऑल एट थ्री हंड्रेड एन्ड सिक्स्टी? रियल व्यू पोइन्ट से हम सभी तीन सौ साठ डिग्री पर है ?