Book Title: Aptvani 13 Uttararddh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 509
________________ ४२८ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) तो वह (विज्ञान स्वरूप) पूर्ण हो जाएगा। रिलेटिव एक-दो जन्मों में बंद हो जाएगा। तब हमारा पूर्णतः विज्ञान स्वरूप हो जाएगा। अर्थात् हम विज्ञान ही हैं लेकिन अभी ज्ञान स्वरूप में हैं, बावा जी। मैं, बावा और मंगलदास। प्रश्नकर्ता : 'मैं' बावा स्वरूप से ही रहता है ? दादाश्री : नहीं! जो यह मानता है कि 'मैं मंगलदास हूँ' वह बावा है। समझ में आया न! इस प्रकार से है ! प्रश्नकर्ता : तो जिस प्रकार से यह व्यवहार में है उसी प्रकार यह रियल में किस तरह से है? दादाश्री : 'मैं' रियल है। वह तो अंतिम ज्ञान है। शब्द बोलना, वहाँ अंतिम (उच्चतम) ज्ञान है और ये बोल न बोलना, वह विज्ञान है। अतः रिलेटिव में 'मैं' का ज्ञान सब से अंतिम प्रकार का ज्ञान है और मंगलदास, वह तो कम्प्लीट रिलेटिव है। मंगलदास तो परमानेन्ट है ही और बावा बढ़ता जाता है। प्रश्नकर्ता : बावा बढ़ता जाता है लेकिन 'मैं' तो वैसे का वैसा ही रहता है न? दादाश्री : 'मैं' तो वैसे का वैसा ही रहता है। प्रश्नकर्ता : और फिर वह 'मैं' विज्ञान स्वरूप तब कहलाता है जब फुल ज्ञान हो जाता है। बावा फुल हो जाता है तब। दादाश्री : 'मैं' जो है, वह ज्ञान स्वरूप है, जब तक निन्यानवे है तब तक और जैसे ही वह सौ हुआ कि वह विज्ञान है। प्रश्नकर्ता : 'मैं' विज्ञान स्वरूप हो जाता है। दादाश्री : जब तक बोलता है तब तक 'मैं' बावा है। प्रश्नकर्ता : मतलब, जब तक बोल चलते रहेंगे तब तक 'मैं' विज्ञान स्वरूप नहीं हो सकेगा?

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