Book Title: Aptvani 13 Uttararddh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 508
________________ [७] सब से अंतिम विज्ञान - 'मैं, बावा और मंगलदास' ४२७ चंदूभाई करेंगे और रिलेटिव शुद्ध होता जाएगा। रिलेटिव शुद्ध होता जाएगा, तो 'बावा जी' शुद्ध होते जाएँगे। अभी ये 'बावा जी' संपूर्ण शुद्ध नहीं कहे जा सकते। 'बावा जी' संपूर्ण शुद्ध हो जाएँगे तब 'मैं' शुद्ध हो जाएगा, कम्प्लीट शुद्ध। 'मैं' भी भगवान ! अभी 'मैं' ज्ञान स्वरूप है, उसके बाद विज्ञान स्वरूप 'मैं' प्रकट होगा! यानी आपको भी यही सेट हो गया है। यह बावा शुद्ध होता जा रहा है और जब वह 'मैं' शुद्ध, साफ हो जाएगा, तब 'मैं' हो जाएगा कम्प्लीट! प्रश्नकर्ता : उसके बाद 'मैं' विज्ञान स्वरूप होता जाएगा। दादाश्री : जब तक बोलते हैं, तब तक ज्ञान स्वरूप है। प्रश्नकर्ता : जब तक 'मैं' बोलता है तब तक ज्ञान है। 'मैं' सुनता रहता है और ज्ञान बोलता रहता है। दादाश्री : उसके बाद जब ज्ञान का बोलना भी बंद हो जाता है तो, वह विज्ञान है। विज्ञान में फिर आवाज़ वगैरह नहीं होती। पूर्णाहुति ! पूर्ण दशा! प्रश्नकर्ता : यानी जिसे 360 डिग्री कहते हैं, वह विज्ञान स्वरूप है दादाश्री : हाँ, 360 हो जाने के बाद बोल या शब्द नहीं रहते। प्रश्नकर्ता : तो जैसे-जैसे ज्ञान बोलता है और 'मैं' सुनता जाता है, वैसे-वैसे डिग्रियाँ बढ़ती जाती हैं। दादाश्री : बढ़ती जाती हैं। जब तक शब्द हैं तब तक हम बावा हैं लेकिन शब्द अलग है। शब्द रिलेटिव हैं और रियल में शुद्ध, विज्ञान है। हम दोनों तरफ हैं। एक, विज्ञान स्वरूप हैं और जो बावा के रूप में है, वह ज्ञान स्वरूप है। ज्ञान रिलेटिव है और विज्ञान रियल है। हमारा यह रिलेटिव बंद हो जाएगा

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