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[७] सब से अंतिम विज्ञान - 'मैं, बावा और मंगलदास'
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खटपट किसलिए है ? तो वह इसलिए कि 'जो सुख मैं भोग रहा हूँ वैसा ही सुख आपको भी मिले'।
बावा ने जो-जो सुख माने थे, वे अब नहीं चखने पड़ते हैं न? प्रश्नकर्ता : नहीं।
दादाश्री : जब तक बावा थे तब तक चखा लेकिन अब तो बावा खत्म हो गया न! बहुत अच्छे इंसान हैं, बेस्ट इंसान। सुख चखने की भावना होती है न बावा को, उससे कहना, 'आप बावा हो, लेकिन मेरे लिए तो मैं और आप दोनों अलग हैं, साथ में नहीं हैं। अब मैं कैसे बीच में हाथ डालूँ? आप अपने प्रयत्न करो'! बावा होकर चखा वह अलग रहा। चला गया। लेकिन अब?
अब जीवन बहुत सुंदर तरीके से बिताना है। अभी अपने साथ जो बावा है उससे कह देना है कि 'जीवन ऐसे बिताओ, जैसे अगरबत्ती'। अगरबत्ती जीवन बिताती है तो उसका क्या काम है ? खुद जलकर दूसरों को सुख देना। अतः उसकी जिंदगी बेकार नहीं जाती! अच्छी, साफसुथरी बीतती है। अगरबत्ती की तरह, यह समझाना है। अगरबत्ती जैसे बन सकते हैं, ऐसा है। ऐसा सब माल है और सुगंधि वाले इंसान हैं।
अब हुआ विश्वास, मुक्ति का इन सब के कनेक्शन मिलते हैं या नहीं? प्रश्नकर्ता : मिलते हैं। दादाश्री : जिसे हम ताल मिलना कहते हैं।
प्रश्नकर्ता : ताल मिलता है। लिंक मिलती है। सभी लिंक कनेक्ट हो जाती हैं।
दादाश्री : हो ही जाती हैं। इसी को ज्ञान कहते हैं। दस जगह पर कनेक्ट हो जाए और दूसरी चार जगहों पर कच्चा पड़ जाए तो वह ज्ञान नहीं कहलाएगा। फिर यह बात अलग है कि समझ में न आए