Book Title: Aptvani 13 Uttararddh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 496
________________ [७] सब से अंतिम विज्ञान - 'मैं, बावा और मंगलदास' ४१५ दादाश्री : ज्ञानीपुरष, ये अंबालाल भाई ज्ञानी हुए। वे वही हैं, मैं, बावा और मंगलदास। 'हम' और 'आप' दोनों बावा प्रश्नकर्ता : अभी तक तो मुझे पता ही नहीं था कि लोग, 'मैं, बावा और मंगलदास' क्यों कहते हैं ? दादाश्री : इसीलिए यह समझा रहा हूँ। ज्ञानी की दृष्टि से समझ लेंगे तो कल्याण हो जाएगा। प्रश्नकर्ता : बहुत ही उत्तम उदाहरण है, मैं-बावा-मंगलदास का। दादाश्री : महात्मा भी खुश हो जाते हैं न! हम बावा ही हैं कहते हैं। आप भी बावा हो, हम भी बावा हैं। आप सुनने वाले बावा और हम बोलने वाले बावा। यह बात तो मैं आपको सिद्धांत पूर्ण करने के लिए बता रहा हूँ। वह भी आपको समझ में आ गया कि मैं किसलिए यह बता रहा हूँ। खुद को लक्ष (ध्यान) में रखकर कहा है। बावा ने कहा तो है लेकिन खुद को लक्ष में रखकर। इसी प्रकार इस 'मैं' के बाद यह चंदूभाई और फिर ये सभी कर्म, कार्य। वह सब दिखाई देता है एक ही लेकिन व्यवहार पूरी तरह से अलग है। अतः 'मैं' इन सब का जानकार है। 'मैं' जानकार है कि भाई, यह जो मठिया (गुजराती व्यंजन) खाया, जो यह जानता है कि इसका स्वाद कैसा आया, वह आत्मा है और जो भोगता है, वह अहंकार है। वह बावा है। अतः यह सब अलग-अलग है। खुद को अलग रहने की ज़रूरत है। और है ही अलग! जो जानता है, वह आत्मा है; जो वेदता है, वह बावा है और जो खाता है, वह मंगलदास है। मज़ा उठाने वाला अलग है और आप भी अलग। मज़ा उठाने वाला बावा है। बावा मज़े लेता है और आप जानते हो! आप चंदूभाई हैं, सुनने वाले। अंबालाल पटेल बोलने वाले और

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