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[७] सब से अंतिम विज्ञान - 'मैं, बावा और मंगलदास'
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पर और स्व का क्षेत्र तू चाहे कितना भी पागलपन करे या समझदारी रखे लेकिन वह बावा है। घनचक्कर! क्यों इतना उछल-कूद कर रहा है ! मैं, बावा और तू बावी और... यह क्या नाटक लगा रखा है ? अब कभी शादी मत करना, पूरी जिंदगी किसी भी जन्म में।
प्रश्नकर्ता : शादी नहीं करनी है।
दादाश्री : मोह चला गया सारा? और जो होगा वह भी खत्म हो जाएगा।
प्रश्नकर्ता : दादा! थोड़ा बहुत है, उसे निकाल दीजिए।
दादाश्री : नहीं। लेकिन वह बावा में है, उसे हमें जानना है कि बावा में इतना मोह है। मुझे ऐसा बता देना।
बावा का खेत देखा है? प्रश्नकर्ता : देखा है।
दादाश्री : उस खेत में सभी कुछ है, वह सभी कुछ बावा का है। उस खेत में कुछ मंगलदास का है। बाकी का सब बावा का है। हम तो खुद के क्षेत्र में ही हैं। हम उस खेत में नहीं हैं, अपने खुद के खेत में हैं। चंदूभाई पराये क्षेत्र में जाते हैं। जो भी भय है, वह उन्हें हैं।
बावा कौन है, वह समझ गए?
एक बहन क्या कह रही थीं? मैं स्त्री हूँ, लेकिन हम बावा नहीं हैं न? वह बावा थोडे ही हैं? ऐसा पूछने पर मुझे क्या कहना पडा? अगर बावा नहीं हो तो क्या बावी हो? हो तो बावी न लेकिन तेईस थोड़े ही हो जाएँगे? नहीं हो सकते। नहीं? बाइस तेईस नहीं बन सकता! (गुजराती में बाईस को बावीस कहते हैं। दादा ने मज़ाक में बावीस को बावी कहा है)
प्रश्नकर्ता : अब दादा! मैं, बावा और मंगलदास, ये तीनों अपनी