Book Title: Aptvani 13 Uttararddh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

View full book text
Previous | Next

Page 498
________________ [७] सब से अंतिम विज्ञान - 'मैं, बावा और मंगलदास ' दादाश्री : जब तक यह बावा है तब तक वेदकता है । और जब तक 'ज्ञानी', वे बावा के रूप में हैं, तब तक वेदकता है और जानने वाला मूल पुरुष है, केवलज्ञान स्वरूप है । वे जो ज्ञाता में रहते हैं, जो जानने में और वेदकता में रहते हैं, वे कौन हैं ? प्रश्नकर्ता : ये ज्ञानी । दादाश्री : हाँ ! ज्ञानी । ४१७ ममता, वह बावा है प्रश्नकर्ता : वह जो 'मैं' है, वही मूल वस्तुत्व है ना ? दादाश्री : 'मैं' के बिना तो चलेगा ही नहीं न! हमें वापस जाना है। उसके बाद ‘मैं' की भी ज़रूरत नहीं रहेगी । 'मैं' करके घुसे थे। 'मैं' करके वापस निकल जाना चाहिए। पहले 'मैं' था । अहम् था, फिर ममता चिपक गई। ममता, वह बावा है । ममता छोड़ते समय भी बावा है और ममता बढ़ाते समय भी बावा है । यह रूपक समझ में आ जाए तो काम निकाल देगा। शुद्धात्मा से प्रार्थना, बावा की आप बावा में रहकर अपने 'मैं' से (दादा भगवान से) कहो कि 'हे दादा भगवान ज्ञानी बावा को चार-पाँच साल इस देह में बिताने दो। ताकि यहाँ सभी लोगों के सारे काम पूरे हो जाएँ' । प्रश्नकर्ता : हाँ, दीर्घायु दीजिए दादा को । दादाश्री : फिर से यह संयोग नहीं मिलेगा इसलिए मैं ज़ोर देकर कहता हूँ। यह जो संयोग है न, वह टॉपमोस्ट संयोग है । फिर से नहीं मिलेगा इसलिए कहता रहता हूँ क्योंकि आप नहीं जानते। मैं जानता हूँ कि यह संयोग कैसा है ! यह कौन कह रहा है ? मंगलदास ( ए. एम. पटेल) कह रहे हैं। ये बावा (ज्ञानीपुरुष) कैसे हैं, उनके बारे में बता रहे हैं! यदि इन ज्ञानी

Loading...

Page Navigation
1 ... 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540