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आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
कोई तीन घंटे, कोई दो घंटे, कोई-कोई सात-आठ घंटे। छ: घंटे के लिए आने वाले लोग भी हैं न यहाँ पर?
प्रश्नकर्ता : हाँ।
दादाश्री : अतः द्वेष तो... इस जीवन में जो कोई भी विषय है न, वे विषय दुःख देते हैं, उस कारण उसे द्वेष होता है। अतः द्वेष से प्रयत्न करके, कोई उसे बुझाने का प्रयत्न करता है। अच्छा-बुरा बाद में सीखा कि यह आम रत्नागिरी वाला है और यह वह वाला है। राग तो बहुत समय बाद सीखा। राग तो था ही नहीं। इस रत्नागिरी आम की ज़रूरत कब पड़ती है? यदि दूसरे आम ही मिलें और ये आम मिलते ही नहीं हों, तब?
इन इंसानों को जो हाजतें हैं न, वे सभी द्वेष वाली हैं। राग बाद में उत्पन्न हुआ है। फिर तो छाँटने लगा कि यह इससे अच्छा है, उससे अच्छा यह है, उससे अच्छा यह है, उसके बजाय यह अच्छा है, लेकिन जब भूख लगती है न, तब क्या वह अच्छा-बुरा कहता है ?
वह सब है अशाता वेदनीय हमें भूख लगती है, तो वह जो भूख होती है, उसे अशाता (दुःखपरिणाम) वेदनीय कहा जाता है। अब बाहर से कोई अशाता वेदनीय नहीं करता। अशाता वेदनीय अर्थात् हमें अंदर द्वेष होता रहता है, नापसंदगी होने लगती है और जो कोई बीच में आए उसे धमका देता है। अब अशाता वेदनीय कदरती रूप से होती है, किसी ने की नहीं है। देह धारण करने का दंड है, अतः द्वेष उत्पन्न होता है उससे। प्यास वगैरह सब अशाता वेदनीय की वजह से लगती है। अतः जहाँ-जहाँ 'लगती है' शब्द आता है न, वह सब अशाता वेदनीय है। प्यास लगती है, भूख लगती है, नींद आती है, थकान लगती है, लगती है, लगती है अर्थात् जो सुलगती है वह सब अशाता वेदनीय है। फिर नींद भी लग जाती है न? ये सब अशाता वेदनीय हैं और इसीलिए द्वेष होता है और द्वेष में से फिर अशाता वेदनीय की वजह से खाने-पीने का ढूँढता है। फिर, जो भी मिलता है,