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[२.३] वीतद्वेष
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है। इसका क्या कारण है? आपकी इच्छा नहीं है फिर भी आकर्षण होता है। ऐसा होता है या नहीं होता?
प्रश्नकर्ता : होता है, होता है।
दादाश्री : तो वह राग नहीं कहलाएगा। राग में तो खुद की इच्छा की वजह से होता है और अब खुद की इच्छा नहीं है। हमने यह ज्ञान दिया उसके बाद से इन सभी की पत्नियाँ हैं, पर वह बगैर इच्छा के होना चाहिए। जितना आकर्षण है सिर्फ उतना ही!
द्वेष विकर्षण है और राग आकर्षण है। आकर्षण-विकर्षण होते ही रहते हैं, वह पुद्गल का स्वभाव है। आत्म स्वभाव वैसा नहीं है।
यह है संपूर्ण विज्ञान जब से ज्ञानीपुरुष से मिले, तभी से वीतद्वेष बना दिया है। उसके बाद जैसे-जैसे फाइलों का निकाल होगा तो वीतराग होते जाओगे और जिसकी सर्वस्व फाइलों का निकाल हो गया वह वीतराग हो गया। ऐसे ज्ञानीपुरुष संपूर्ण वीतराग होते हैं। ज़रा एक-दो अंश की कमी रहती है, बाकी संपूर्ण वीतराग!
जैसे-जैसे वीतरागता बढ़ती जाती है, उतनी ही राग-द्वेष रहितता आती जाती है और उतना ही हमें मोक्ष समझ में आता जाता है। पूर्ण दशा उत्पन्न होती जाती है। संपूर्ण वीतरागता, उसी को भगवान कहते हैं।
अपना यह तरीका पूर्णतः वैज्ञानिक है! संपूर्ण विज्ञान है यह तो! पूरा ही विज्ञान है। सताइस सालों से मैं जो कुछ भी कह रहा हूँ वह संपूर्ण विज्ञान है। एक-एक शब्द विज्ञान है। विज्ञान को सिद्धांत कहा जाता है।