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[६] निरालंब
जगह पर आता जाएगा, वैसे-वैसे वही खुद का पूर्ण स्वरूप बन जाएगा। अभी की दशा में अनुभव और अनुभवी दोनों अलग हैं जबकि वहाँ पर एकाकार होते हैं।
जब यह माल खाली हो जाएगा तब सभी अनुभव होंगे। वह माल जो अनुभव में दखल करता रहता है, स्वाद नहीं आने देता। जैसे कि यदि एक व्यक्ति ने 40 लाख रुपये का ओवरड्राफ्ट लिया हो, और वह बेकार हो जाए, नौकरी-धंधा कुछ भी न रहे तब अगर कोई व्यक्ति उसे 15 हज़ार की नौकरी दिलवा दे तो उसका उपकार मानना चाहिए या नहीं मानना चाहिए? व्यापार था, तब ज़रा सी भी समझ नहीं थी, 40 लाख रुपये का कर्ज चढ़ा दिया!
उपकार मानना चाहिए न? उपकार मानता भी है। दो-चार महीनों बाद जब वह व्यक्ति मिले तब वह पूछे, 'अब कैसा है? आनंद है न?' 'नहीं! कैसा आनंद! अभी तो वहाँ पैसे चुका रहा हूँ और खाने को मिल रहा है।' अरे भाई, उधार लिया है तो चुकाना ही पड़ेगा न! अतः जब तक यह सारा उधार न चुक जाए तब तक तो रहेगा। उसके बाद मज़ा आएगा, वर्ना फिर भी शांति तो रहती है, चिंता नहीं होती। अगर पाँच आज्ञा में रहे न तो चिंता मुक्त रह सकते हैं।
अगर पाँच हज़ार लोगों का भी कुछ काम हो रहा हो न, तो अच्छी बात है। बाकी, वहाँ मोक्ष में जाने की क्या जल्दी है? अब हम ऐसी जगह पर आ गए हैं कि यहाँ से वापस निकालने वाला कोई है ही नहीं। यदि आप मेरी आज्ञा पालन करोगे तो यहाँ से आपको कोई भी वापस नहीं निकाल सकेगा क्योंकि आपको आज्ञा के अधीन रहना पड़ेगा, वर्ना वापस निकाल भी सकते हैं। जबकि मुझे वापस निकालने वाला कोई नहीं है क्योंकि मैं तो कहता हूँ, 'निरालंब हो चुका हूँ। आपको तो शुद्धात्मा शब्द का अवलंबन हैं लेकिन वह शब्द अनुभव के रूप में है जबकि मूल आत्मा तो नि:शब्द है। अतः फिर अनुभव होतेहोते अनुभव रूपी बन जाएगा। तब खुद शुद्धात्मा (मूल आत्मा) हो जाएगा।