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[७] सब से अंतिम विज्ञान - 'मैं, बावा और मंगलदास'
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दादाश्री : वही बावा है न! उसे दोनों तरफ रहना है।
प्रश्नकर्ता : उस बावा को छोड़कर, शुद्धात्मा के साथ जॉइन्ट हो जाना है? दादाश्री : नहीं! शुद्धात्मा तो हम हैं ही।
जो बंधा हुआ है वह 'यह' है प्रश्नकर्ता : ज्ञान लेने के बाद जो चरणविधि पढ़नी होती है, वह कौन करता है?
दादाश्री : वाणी। प्रश्नकर्ता : तो क्या ऐसा कह सकते हैं कि प्रतिष्ठित आत्मा बोलता
है?
दादाश्री : तो और कौन बोलता है? जिसे मुक्त होना है वह बोलता है। जो बंधा हुआ है वह।
प्रश्नकर्ता : हाँ, लेकिन वह कौन है दादा? कौन बंधा हुआ है ?
दादाश्री : यह अहंकार! शुद्धात्मा तो बंधा हुआ है ही नहीं न! जो बंधा हुआ है वही मुक्त होने के लिए शोर मचाता है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, इसमें दो चीजें आती हैं, 'आपके सर्वोत्कृष्ट सद्गुण मुझमें उत्कृष्ट रूप से स्फुरायमान हों', ऐसा ज़रा सा व्यवहार का आता है और 'मैं शुद्धात्मा हूँ' ऐसे वाक्य भी आते हैं।
दादाश्री : वही का वही 'मै', लेकिन तूने उसका अमल कहाँ किया? व्यवहार अर्थात् अमल में लाई हुई चीज़। 'मैं शुद्धात्मा हूँ' वह सही है और वह व्यवहार पूरा विकल्प कहलाता है। जहाँ 'मैं' का उपयोग किया, वह विकल्प है। अतः जो बंधा हुआ है, वह मुक्त होने के लिए हाथ-पैर मार रहा है।
प्रश्नकर्ता : तो क्या अहंकार बंधा हुआ है ?