________________
[६] निरालंब
३७१
लेना-देना? हमें हूँफ की ज़रूरत नहीं है। यह तो मैं ध्येय बता रहा हूँ। अभी तो आपको अपना काम निकालना बाकी है। इसका तो आपको ध्येय रखना है।
अंत में कभी न कभी निरालंब होना ही पड़ेगा न? तब तक अवलंबन तो लेना पड़ेगा! सत् के अवलंबन लेने पड़ेंगे।
ज्ञानीपुरुष से ज्ञान मिला, फिर तभी से निरालंब होने लगते हैं। अभी तक संपूर्ण निरालंब नहीं हुए हैं। निरालंब होने की शुरुआत हो चुकी है तब तक हूँफ ही ढूँढता रहता है। पूरी रात में क्या कोई खा जाएगा? साथ वाला भी सो जाता है और यह भी सो जाता है। किसकी हूँफ ढूँढ रहा है? लेकिन जब तक संसार जागृति है तब तक हूँफ है लेकिन आत्मा हो जाने के बाद हँफ नहीं रहती। धीरे-धीरे भय कम होते जाते हैं। आप आत्मा हो गए हैं न, अब भय कम लगते हैं न?
प्रश्नकर्ता : किसी का भी भय नहीं, निर्भय !
दादाश्री : जबकि इस दुनिया के लोग तो, अगर रात को अकेले रहना हो, तब भी हूँफ ढूँढते हैं। अकेले को तो नींद भी नहीं आती। हूँफ ढूँढते हैं दुनिया के लोग।
अब मैंने आपको निरालंब बना दिया है। अब जो हूँफ ढूँढते हो न, वह तो सारी डिस्चार्ज है। अभी आप निरालंब हो लेकिन आपका निरालंब एक्जेक्ट निरालंब नहीं कहलाएगा। आप शब्दावलंबन स्थिति में आ गए हो, बहुत बड़ी स्थिति कहलाती है। यह पद तो देवी-देवताओं को भी नहीं मिलता। बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों ने किसी ने नहीं देखा है ऐसा पद है यह, इसलिए काम निकाल लेना।
इतनी सेफसाइड और इतना आनंद! भीतर, सुख के लिए उन्हें अन्य किसी की ज़रूरत ही नहीं है। खुद अपने स्वभाव से ही सुखमय अर्थात् निरालंब है, जिसे आलंबन की ज़रूरत ही नहीं है ऐसा आत्मा दिया है। दादा अठहत्तर साल की उम्र में कैसे रहते हैं। नहीं? अवलंबन की वजह से तो परवशता हो गई है। अवलंबन ही परवशता है न?