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[६] निरालंब
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आज्ञा-चारित्र में से दरअसल में इन पाँच आज्ञाओं का पालन करने से चारित्र उत्पन्न होता है। पाँच आज्ञा का पालन प्रथम चारित्र है, आज्ञा चारित्र है और उसके बाद दरअसल चारित्र आएगा।
प्रश्नकर्ता : उनमें से जो परिणामित होगा, वह असल चारित्र है। जब आचरण में परिणामित होगा तब वह असल चारित्र है।
दादाश्री : निराधार बन जाए, वह असल है। यह साधारी है, आज्ञा का। आज्ञा का आधार है, बाद में निराधार हो जाएगा। निरालंब! कोई अवलंबन नहीं। यह पूरा जगत् अवलंबन की वजह से खड़ा है।
प्रश्नकर्ता : फिर आज्ञा रहेगी ही नहीं? तो फिर आज्ञा का क्या होगा?
दादाश्री : वे गायब हो जाएँगी। वहाँ पर ज़रूरत ही नहीं रही। किनारा आने के बाद क्या हमें नाव पर दया रखनी पडेगी?
प्रश्नकर्ता : नहीं जी।
दादाश्री : हमें तो उतरकर चले जाना है। नाव अपने आप ही वापस चली जाएगी। उसी प्रकार आज्ञा अपने घर चली जाएगी। हमें अपने घर चले जाना है। उतार दिया, डेक पर। किनारे पर उतार देते हैं न?
प्रश्नकर्ता : जी। किनारे पहुँचा दिया।
दादाश्री : पहुँचा दिया। ये आज्ञाएँ किनारे तक पहुँचा देंगी वर्ना थपेड़े खिलवाएगी।
__रिलेटिव में से एब्सल्यूट की तरफ
कोई अवलंबन न रहे, उस तरह से निरालंब होकर बैठे हैं हम इसलिए हम पर चाहे कैसे भी प्रयोग करो फिर भी हमें स्पर्श नहीं करेंगे क्योंकि हमारा स्वरूप निरालंब है। अवलंबन वाले को पकड़ते हैं कि मैं