Book Title: Aptvani 13 Uttararddh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 481
________________ आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध) प्रश्नकर्ता : यह जो भूख लगती है, प्यास लगती है, वे ऐसी चीजें नहीं हैं कि देखी जा सकें। अंदर जो होता है, वह अपने आप ही होता है । तो वह किसे होता है और उसे कौन देख सकता है? आपने ऐसा कहा था कि ‘हम जब भोजन करते हैं तो सबकुछ देख सकते हैं। भोजन पचता है, उसे भी देख सकते हैं । हम सबकुछ अपने से बिल्कुल अलगअलग देख सकते हैं', तो ऐसा कैसे दिखाई देता है, कौन देख सकता है? इसमें ज्ञाता-दृष्टा कौन है ? दादाश्री : अरे, आत्मा के सिवा कोई भी वस्तु ज्ञाता - दृष्टा नहीं हो सकती। ४०० प्रश्नकर्ता : बावा को बावा का अस्तित्व खत्म करने के लिए क्या करना चाहिए ? दादाश्री : अब अस्तित्व उत्पन्न हो सके, ऐसा है ही नहीं। यदि बावा के पक्ष में नहीं बैठेंगे तो बावा के बच्चे नहीं होंगे। जब कोई 'तुझे' गाली दे, उस क्षण यदि तू खुद का रक्षण न करे तब वह सब फिर से होगा ही नहीं । जो मोक्ष ढूँढ रहा है : मोक्ष स्वरूप है, वही! प्रश्नकर्ता : मोक्ष में किसे जाना है ? दादाश्री : जो बंधा हुआ है, उसे । जिसे दुःख होता है, उसे । प्रश्नकर्ता : अर्थात् पुद्गल को ? I दादाश्री : जो पूछ रहा है, उसे । जिसे मुक्त होना है, वह। अब मुक्त किसे होना है ? आपको मुक्त होना है ? प्रश्नकर्ता: हाँ। दादाश्री : आप तो अपने आपको मान बैठे थे कि 'मैं चंदूभाई हूँ'। गलत निकला न सारा ? आप अपने आपको पहले जो मानते थे कि 'मैं चंदूभाई हूँ', वह

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