Book Title: Aptvani 13 Uttararddh
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Dada Bhagwan Aradhana Trust

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Page 472
________________ [७] सब से अंतिम विज्ञान 'मैं, बावा और मंगलदास' वहाँ पर तो कहता है, 'मैं ससुर हूँ' । संयोगों के अनुसार खुद को जो कुछ बदलना पड़ता है, वह सब बावा में जाता है । जब जमाई आए तब ससुर कहलाते हैं लेकिन ससुर आएँ तो हम उनके जमाई कहलाते हैं । जमाई के मरने पर जो ससुर बना है, उसे उसका आघात लगेगा । उससे आत्मा को क्या लेना-देना ? ३९१ प्रश्नकर्ता : अर्थात् जैसे संयोग आते हैं उसी अनुसार बावा की बिलीफ बदल जाती है या बावा बदलता है ? दादाश्री : बावा बदलता ही रहता है । जो बदलता रहे वही कहलाता है बावा जबकि नाम वही का वही रहता है । नाम जो है वह विशेषण वाला है। यह वह मंगल है, पहचाना? वह लंगड़ा, नहीं ? विशेषण होते हैं उसके, लेकिन मूलतः वह होता है मंगल का मंगल ही लेकिन भाई वास्तव में कौन है ? तब कहता है, जो ऐसा मानता है, 'मैं मंगल ही हूँ', वह 'बावा' है । अतः बावा बदलता रहता है। 'मैं कलेक्टर हूँ, मैं प्रधानमंत्री, मैं प्रेसिडेन्ट ऑफ इन्डिया', वह बदलता रहता है। एक स्टेज में नहीं रहता जबकि मंगलदास जन्म से लेकर आखिर में मरने तक वही का वही मंगलदास ही रहता है । 'मैं' आत्मा वही का वही है । इन सारी बलाओं ने जकड़ लिया है। समधी हूँ, मामा हूँ, चाचा हूँ, तरह-तरह के पाश हैं ये तो। वकील भी कहलाता हूँ । वकालतपन, वह बावापन कहलाता है । वही मंगलदास और मैं । इस ‘मैं' को पहचानना था। बावा और मंगलदास को पहचाना तो फज़ीता हो गया। ‘मैं' को पहचान लिया इसलिए फज़ीता बंद हो गया। ये सब, एक ही हैं। ऐसा है यह तो ! आप चंदूभाई हो ? हाँ । तब अगर पूछें, 'लेकिन चंदूभाई कौन से ?' तब कहता है 'इंजीनियर' । ओहो ! आप चंदूभाई और फिर इंजीनियर हो। जबकि वह क्या कहता है ? 'मैं बावा हूँ।' तो अब 'आप' समझ गए कि इंजीनियर भी नहीं है और चंदूभाई भी नहीं है। 'मैं' शुद्धात्मा हूँ कहा तो अब इस तरफ चला और मैं कौन ? मैं शुद्धात्मा

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