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आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
मंगलदास। 'मैं' आत्मा है। 'मैं' जानता है कि बावा कैसा है और कैसा नहीं। नहीं जानता?
प्रश्नकर्ता : सबकुछ जानता है।
दादाश्री : फिर मंगलदास को मंगली मिलती है। मंगलदास और मंगली की शादी होती है। मंगलदास को पहचाना क्या? मंगलदास और मंगली लेकिन दोनों मंगलदास! बावा कौन है? तब कहते हैं, जो मंगलदास के रूप को (बुद्धि) देखती है, वह। अतः मंगलदास के साथ उसका संबंध बनता है। लेना-देना कुछ भी नहीं है और मंगलदास की उत्तेजना बावा में घुस जाती है। उत्तेजना मंगलदास में है, और बावा मान लेता
रात को अगर फिर वाइफ के साथ झगड़ा करके सो जाए, तो उसे मन में ऐसा होता है कि 'अब कब मेरे शिकंजे में आएगी'। देखो बावा क्या-क्या करता है?
प्रश्नकर्ता : सभी कुछ करता है।
दादाश्री : बावा को पता नहीं है कि वह यह क्या कर रहा है ! उसे भान नहीं है कि इसका क्या रिएक्शन आएगा!
स्त्री है तो भी बावा, पुरुष है तो भी बावा। बूढ़ा है तो भी बावा है, जवान है तो भी बावा, बेटा नंगा घूमे तो भी बावा। पेट में हो तब भी बावा। उदाहरण अप्रोपिएट है या नहीं?
प्रश्नकर्ता : सही है दादा।
दादाश्री : कौन सी पुस्तक में मिलेगा? यह बुद्धिकला का नहीं है, यह ज्ञानकला का है। बुद्धिकला में आत्मा की कला नहीं आ सकती। अब ‘बावा' को पहचान लोगे या नहीं?
प्रश्नकर्ता : पहचान लेंगे।
दादाश्री : 'मैं' जानता है या नहीं जानता?