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[६] निरालंब
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चला गया, वर्ना यह हम 'इतना सा, इतना हुआ, सम्यक् हुआ, फलाँ हुआ है', ऐसा हिसाब लगाने वाला ही निकल गया।
जिसे इस दुनिया के लोग भगवान कहते हैं, उस भगवान की हमें ज़रूरत नहीं है क्योंकि हम निरालंब हो चुके हैं।
आपको ये जो आज्ञाएँ दी हैं, उनका आराधन करते-करते उसके फल स्वरूप यह (स्थिति) आकर रहेगी। उस आराधना का फल, शुद्धात्मा तो बन गए लेकिन शुद्धात्मा बनने के बाद जो आराधन दिया है, उसके फल स्वरूप अस्पर्श्य और निरालंबी आत्मा आएगा। 'मैं शुद्धात्मा हूँ, यह तो शब्द का अवलंबन है। निरालंब, वही भगवान हैं।
प्रश्नकर्ता : तो फिर ज्ञान का भी अवलंबन नहीं रहेगा, ऐसा है ?
दादाश्री : नहीं। ज्ञान का अवलंबन अर्थात् पाँच आज्ञा का अवलंबन। वर्ना मूल ज्ञान ही आत्मा है। उसे विज्ञान स्वरूप कहते हैं। संपूर्ण दशा को विज्ञान स्वरूप कहते हैं।