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[६] निरालंब
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प्रश्नकर्ता : सामने वाले व्यक्तियों के अवलंबन होते हैं न! इस सिनेमा वगैरह का अवलंबन तो जल्दी से फेंका जा सकता है। लेकिन अब जो व्यक्तिगत...
दादाश्री : नहीं। वह फेंकने से नहीं छूटेगा। वह तो अपने आप ही कम हो जाएँगे, न जाने कहाँ चले जाएँगे!
प्रश्नकर्ता : लेकिन व्यक्तियों के अवलंबन रहा करते हैं।
दादाश्री : वे तो धीरे-धीरे चले जाएँगे न, वह तो हिसाब है... व्यक्तियों के तो। अवलंबन अर्थात् इनके बगैर मेरा नहीं चलेगा। ऐसा नहीं लेकिन ये सब हिसाब हैं। आमने-सामने हिसाब हैं सारे। कॉम्प्लेक्स है सब लेकिन उससे कोई परेशानी नहीं होगी।
प्रश्नकर्ता : लेकिन वे कॉम्प्लेक्स छूटेंगे कैसे? वे ऑटोमैटिक ही छूट जाएँगे?
दादाश्री : नहीं-नहीं, और व्यवहार अवलंबन तो हमें इन नीरू बहन का है। इन सब का अवलंबन ही है न! वास्तव में निश्चय अवलंबन का मतलब क्या है कि जिसका आधार लेने पर, अंदर अगर कोई अड़चन आए, तब उसका (आत्मा का) अवलंबन लेते हैं। व्यवहार वाले को तो सबस्टिट्यूट की तरह रखते हैं।
प्रश्नकर्ता : किस तरह से?
दादाश्री : 'पर' में चिपक जाता है वापस । 'पर' में से स्व में जाने के लिए तैयार हुआ, और वापस अवलंबन, बाहर का ही अवलंबन, इससे वापस 'पर' में चिपक जाता है। दूसरे में चिपक जाता है। इसका नहीं तो उसका (अवलंबन) लेता है। क्या लोग ऐसा नहीं सोचते? चिंता होने लगे तब दूसरे विचार करने लगता है, सिनेमा देखने चला जाता है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन उसके लिए क्या करना चाहिए? उसका क्या उपाय है?
दादाश्री : नहीं, ऐसा नहीं। अभी तो उसके लिए दूसरा अवलंबन