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[६] निरालंब
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प्रश्नकर्ता : दादा, उस बोझ को हल्का करने के लिए आपसे प्रार्थना की है।
दादाश्री : वह ठीक है। आपको बोझ नहीं रखना है। वह तो अपने आप ही सामने आकर रहेगा अब। इन आज्ञाओं का पालन करोगे न, तो वह पद सामने आ जाएगा। मुझे साफ-साफ कह देना चाहिए न, कि यह क्या है ! करेक्टनेस तो आनी चाहिए न ! केवलज्ञान ! एब्सल्यूट! फॉरेन वाले समझते हैं एब्सल्यूट को। अतः हमने फॉरेन वालों को लिख दिया है कि 'हम थ्योरी ऑफ एब्सल्यूट में नहीं हैं, थिअरम ऑफ एब्सल्यूटिज़म में हैं'। थिअरम अर्थात् उसके अनुभव में ही है।
प्रश्नकर्ता : संपूर्ण जागृति ही केवलज्ञान है?
दादाश्री : संपूर्ण। और अभी जो आपकी जागृति बढ़ी है वह संपूर्ण होने की तैयारी कर रही है। संपूर्ण जागृति को ही निरालंब कहते हैं। अभी तो अवलंबन है, अभी तो आपको मेरे पास आना पड़ता है या नहीं? आपको मेरा अवलंबन लेना पड़ता है या नहीं? यह अवलंबन कहलाता है। 'मैं शुद्धात्मा हूँ', वह अवलंबन है। अभी ज्ञान का लाभ मिल रहा है न पूरा-पूरा? किसी भी जगह पर समाधान दे, ऐसा है न?
प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, उसी पर से पूरा विचार आता है न! हम जो यह एब्सल्यूट शब्द कहते हैं, तो उससे कौन सा चित्र बनता है?
दादाश्री : यह मूल आत्मा है न, वह एब्सल्यूट है। उसे अन्य किसी की ज़रूरत नहीं है। एब्सल्यूट का मतलब क्या है ? निरालंब। उसे किसी के अवलंबन की ज़रूरत नहीं है, खुद अपने प्राण से ही जी रहा है। यानी इस तरह का प्राण नहीं है। खुद अपने आपसे ही जी रहा है, निरंतर सुख! निरंतर आनंद! वही आत्मा है।
अब इस शुद्धात्मा पद की डिग्री में आए हैं, शुरुआत हुई है लेकिन अभी मूल आत्मा मीलों दूर है लेकिन आपने मोक्ष के दरवाज़े में प्रवेश कर लिया है। अब आपका मोक्ष हो गया है लेकिन यहाँ पर रुक मत जाना।