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आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
प्रश्नकर्ता : व्यापार में भी हूँफ ढूँढने से मार पड़ी।
दादाश्री : हाँ, और हूँफ हमेशा ज़िदंगीभर एक सरीखी रहे ऐसा नहीं रहता न, सिन्सियर। सिन्सियरली नहीं रहता न!
__ शादी इसीलिए करते हैं न, कि ज़िदंगीभर सिन्सियरली हूँफ मिलेगी। शादी करने से तो हूँफ मिलती है। हूँफ नहीं हो तो घबराहट हो जाती है उसे। घर पर नहीं मिले तो बाहर हूँफ ढूँढता है। सिर्फ ज्ञानीपुरुष को ही हँफ की ज़रूरत नहीं है। ज्ञानी निरालंब होते हैं।
मोक्ष में जाने के लिए बहुत मज़बूत बनना पड़ेगा इसलिए कुदरत मज़बूत बनाती है।
प्रश्नकर्ता : इसके बावजूद भी पति और बेटे की चिंता नहीं रहती लेकिन फिकर क्यों रहती है?
दादाश्री : वह तो रहेगी न भाई। एक महीना देखना, अकेले सो जाना इस रूम में। इस रूम में अकेले सो सकते हो? एक महीने तक? हं?
प्रश्नकर्ता : नहीं।
दादाश्री : इसका मतलब तो अंदर हूँफ चाहिए। तो हूँफ की ही झंझट है।
प्रश्नकर्ता : तो ये सब आवरण मोक्ष के लिए बाधक ही हैं न?
दादाश्री : हूँफ रहित जीवन, वही मोक्ष कहलाता है। हूँफ परवशता है। हम अकेले हों तो नौकर से कहते हैं कि, 'भाई यहाँ आकर सो जाना न!' अगर एक दिन नहीं आए तो हमारे मन में ऐसा लगता है कि 'अरे, यह बेचारा आ जाए तो अच्छा है! मैं पूरी रात क्या करूँगा?' यह हूँफ है। वह दूसरी तरफ सो जाए, तो फिर हमें क्या दे देता है ? हूँफ है न!
प्रश्नकर्ता : यह जो हूँफ है, क्या यह भी भोजन और नींद जितनी मादकता लाती है?