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[६] निरालंब
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है, हूँफ। लोग उसे हूँफ कहते हैं। रात को अगर बंगले में अकेले सोना पड़े तब भी कहेगा, 'किसी को बुला लाओ न!' अब अगर पाँच लोग उसे मारने आएँ तो उस समय वह उसे बचा लेगा क्या? बल्कि अगर वह डरपोक होगा तो मार खिलाएगा।
प्रश्नकर्ता : हूँफ के बिना रह नहीं सकता, घबरा जाता है।
दादाश्री : हाँ, वही मैं कह रहा हूँ न! इसलिए यह कहते हैं कि तू वीतराग बन जा! तुझे यह क्या झंझट है ? इसलिए हम कहते हैं न कि निर्भय बन जाओ। किसी की ज़रूरत नहीं है। हम ज्ञान देते ही उसे ऐसा कहते हैं कि 'भाई, तू शुद्धात्मा है'। तू दर्पण में देखकर पीछे थपथपाए न, तब भी किसी की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। उसके बाद ज़रूरत पड़ेगी क्या? 'चंदूभाई, मैं हूँ आपके साथ' ऐसा कहना, तो फिर क्या वह कोई शिकायत करेगा?
प्रश्नकर्ता : नहीं करेगा।
दादाश्री : यह तो ऐसा है कि किसी और के बिना ज़रा सा भी नहीं चलता। अब अगर उसे लाए, और वह अगर घबरा जाएगा तो बल्कि मार खिलाएगा।
अगर पति पत्नी के साथ न हो तो उसे हूँफ नहीं रहती। हूँफ के लिए ही है। बच्चे को उसकी माँ की हूँफ है, इसलिए वह अकेला नहीं रहता। किसी को पति की हूँफ रहती है। अतः यह हूँफ है। अब हूँफ अलग चीज़ है और आधार अलग चीज़ है। आधार लोड वाला होता है और हूँफ अर्थात् उसके मन में है कि वह साथ में है। अगर साथ वाला सो जाए तो भी उसे कोई हर्ज नहीं है लेकिन जब तक वह नहीं आए तब तक उसे नींद नहीं आती। उसके आने के बाद ही नींद आती है।
हूँफ, हूँफ और हूँफ। उसे हूँफ अच्छी लगती है, वही पसंद है। हूँफ शब्द समझने जैसा है। व्यापार में भी हूँफ की ज़रूरत रहती है। हूँफ यानी जब वह रोए तब अगर उसके साथ में कोई रोने लगे तो उसे मज़ा आता है। अकेले रोना अच्छा नहीं लगता।