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आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
है कि तुरंत प्राप्त हो जाए। यह तो हम बताने के लिए कहते हैं कि ऐसे हो सकते हैं। यह ऐसी स्थिति है। यह तो मेरे कितने-कितने जन्मों का इकट्ठा किया हुआ फल है। यह विज्ञान ऐसा है कि ऐसा होना संभव है। खुद निश्चय करके इसके पीछे पड़ जाए, तो ऐसा होना संभव है। पहले स्थल में निरालंब हो जाएगा उसके बाद सक्ष्म में निरालंब हो जाएगा। फिर सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम। निरालंब का मतलब क्या है ? 'शुद्धात्मा हूँ', शब्द के इस अवलंबन की भी ज़रूरत नहीं है। जिसने मूल रूप देखा हो, क्या उसके लिए अवलंबन हो सकता है ?
प्रश्नकर्ता : इसका मतलब तीन चीजें हुईं न दादा। सूक्ष्म, सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम। वही पूरी वस्तु।
दादाश्री : ऐसा कब हो सकता है? जो आ पड़े वही खाए, जो मिल गए वही कपड़े पहने, जो मिल गया है उसी सब का उपयोग करे तब वह काम होता है। बिस्तर भी जो मिल जाए वही। हमारे हिस्से में
आज रिक्षा आ गई तो रिक्षा में आ गए आराम से। हमें ऐसा नहीं है कि यही चाहिए। क्या आ पड़ा, उसे देखना है। रिक्षा नहीं होती तो धीरे-धीरे चलकर आ जाते, नहीं तो कुर्सी में बैठकर आ जाते लेकिन आ जाते। फिर भी कभी सत्संग बंद नहीं रखते। अगर केडीलेक (गाड़ी) न हो, तब क्या केडीलेक बड़ी है या सत्संग?
अंत में सत्संग भी आलंबन फिर भी हम से तो अब यह सत्संग भी नहीं हो पाता। सत्संग भी हमें बोझ लगता है।
प्रश्नकर्ता : लेकिन हमें तो इस सत्संग से प्रेरणा मिलती है न!
दादाश्री : हाँ, आपके लिए सत्संग की ज़रूरत है लेकिन मेरे लिए यह सत्संग बोझ वाला है ! यह सत्संग करते हैं लेकिन आपको यह ध्येय रखना है कि हमें ऐसे सत्संग तक पहुँचना है जहाँ हम खुद अपने आपके साथ ही सत्संग में रह सकें। अन्य किसी की ज़रूरत न पड़े। उसके