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[६] निरालंब
अलावा बाकी का सब तो अवलंबित है । किसी दूसरे की ज़रूरत पड़ी तो वह अवलंबित है और इसीलिए परतंत्र है, और परतंत्र हो गए तो हमें पूरा सुख नहीं रहेगा ! सुख निरालंब होना चाहिए ! किसी अवलंबन की ज़रूरत न रहे।
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अंतर, आधार और आलंबन में
प्रश्नकर्ता : आधार और आलंबन के बारे में और अधिक समझना है। देह अध्यात्म विद्या का आधार है । तभी मोक्ष हो सकता है लेकिन आत्मा को देह का अवलंबन है या नहीं ?
दादाश्री : अज्ञान दशा में आत्मा को (व्यवहार आत्मा को ) देह का आधार कहा गया है न! यदि देह है तो बंधन है । बंधन है इसलिए मोक्ष ढूँढ निकालता है। अवलंबन अलग चीज़ है और आधार को निराधार करना, ये दोनों चीजें अलग हैं । आधार, निराधार हो सकता है लेकिन अवलंबन से निरालंब होने में ज़रा देर लगती है ।
प्रश्नकर्ता : अवलंबन और आधार का मतलब क्या है ? वह आप किसे कहते हैं? पहले यह समझाइए।
दादाश्री : हं! वह बात करते हैं हम | आधार में लोड लगता है। अवलंबन में तो लोड नहीं लगता और अवलंबन हो तभी वह रेग्यूलर रह सकता है। अवलंबन की वजह से रेग्यूलर रह सकता है। उसे भी अगर हमें देशी भाषा में कहना हो तो अवलंबन अर्थात् ओलंबो (भूलंब, साहुल)। हमें जब दीवार बनानी होती है तो ओलंबो रखने से ही सीधी बनती है और आधार तो वेट है, लोड वाला होता है । आधार अलग चीज़ है और अवलंबन, वह अलग चीज़ है । अवलंबन अर्थात् ओलंबो। ओलंबो में एक ही चीज़ है। सिर्फ शुद्धात्मा ही ओलंबो है। अन्य कोई अवलंबन है ही नहीं। अपनी भाषा में अगर दूसरा कोई अवलंबन कहें तो उसे हूँफ (सहारा) कहते हैं।
अगर कारीगर से कहें कि 'तूने यह दीवार टेढ़ी क्यों बना दी ? ' तब कहेगा ‘साहब आलंबन नहीं था' । तो फिर उसे आलंबन बोलना नहीं