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[६] निरालंब
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दादाश्री : हाँ, शब्दों से परे है वह तो लेकिन इस स्टेशन पर आने के बाद जा सकेंगे। आपकी गाड़ी तो आगे बंद हो जाती है। आपको थोड़ा बहुत चलकर जाना है। ज़रा सा ही! आप समझते हो कि 'अब यहाँ पर चलना नहीं है, लेकिन ऐसा नहीं है। पाव-आधा घंटा चलना पड़ेगा। वह ट्रेन यहीं तक जाती है। अंतिम स्टेशन है यह शुद्धात्मा। उसके बाद बिना स्टेशन वाला राजमहल! हमेशा का, परमानेन्ट एड्रेस। एड्रेस, और वह भी परमानेन्ट।
प्रश्नकर्ता : इस दूषमकाल की वजह से थोड़ा चलना बाकी है।
दादाश्री : हाँ। ज़रा सा ही चलना बाकी रहा है, काल का प्रभाव है न! लेकिन यह अवलंबन वाला शुद्धात्मा है। शब्द का अवलंबन है। जबकि हम जिस स्टेशन पर खड़े हैं वह, जिस अंतिम स्टेशन पर महावीर भगवान खड़े थे, वह है। यह निरालंब स्टेशन है। शब्द-वब्द कुछ भी नहीं। तब वह जो ज्ञान है, वह वहाँ पर सब तरफ तरफ छा जाएगा। आम के (ज्ञेय के) चारों तरफ छा जाएगा!
प्रश्नकर्ता : मुझे ऐसा होता है कि यह शुद्धात्मा जो शब्द से है, जिसे हम लक्ष में रखते हैं, यदि उस शुद्धात्मा की शक्ति इतनी अधिक है तो फिर उसका अनुभव होने में देर क्यों लगती है?
दादाश्री : उसमें तो बहुत टाइम लगता है। उसके कई कारण हैं, प्रतिस्पंदन पड़े हुए हैं, जब वे सारे प्रतिस्पंदन शांत हो जाएँगे, तब होगा। अनंत जन्मों के प्रतिस्पंदन पड़े हुए हैं।
इसलिए बहुत जल्दबाज़ी करने जैसा नहीं है। अपनी जो आज्ञाएँ हैं न, उतना ही रह पाएगा, बाकी बहुत गहराई में उतरने जैसा नहीं है। अपने आप ही स्टेशन आकर रहेगा। हम गाड़ी में बैठ गए हैं न तो हमें गाड़ी छोड़नी नहीं है फिर अपने आप ही स्टेशन आकर रहेगा। ये आज्ञाएँ हैं ही ऐसी, तो निरालंब की तरफ जाना जारी ही है और कभी न कभी वह आ जाएगा। यह शब्द का अवलंबन है लेकिन भगवान भी ऐसा स्वीकार करते हैं कि जब से इस अवलंबन तक पहुँचा, तभी से मोक्ष में पहुँच गया।