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आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
एक बार इंसान का मोक्ष हो गया फिर तो मानो वह भगवान ही बन गया। स्वतंत्र हो गया। फिर निरालंब है, किसी अवलंबन की ज़रूरत नहीं। मैं बहुत समय से निरालंब स्थिति भोग रहा हूँ।
मोक्ष ऐसा नहीं होता। वहाँ कोई उठाने वाला नहीं है। वहाँ पर अपना कोई ऊपरी नहीं है और अन्डरहैन्ड नहीं है, बस... और निरालंब, जहाँ किसी भी प्रकार का अवलंबन नहीं। यह जो अवलंबन है, वही बंधन है। जबकि निरालंब, इस शरीर के होने के बावजूद भी हम निरालंब स्थिति को देख सकते हैं और अनुभव कर सकते हैं और बंधन वाली स्थिति को भी अनुभव कर सकते हैं। दोनों ही स्थितियों को अनुभव कर सकते हैं। अंतिम बात है, निरालंब! तभी मोक्ष कहा जाएगा।
भगवान महावीर पूर्ण निरालंब भगवान महावीर निरालंब हो चुके थे। बारहवें गुणस्थानक पर और दूसरे शुक्लध्यान (स्पष्ट वेदन) में निरालंब हो जाते हैं। तब तक अवलंबन, अवलंबन और सिर्फ अवलंबन है। बारहवें गुणस्थानक में पहला शुक्लध्यान (अस्पष्ट वेदन) भी अवलंबन वाला होता है। अतः अवलंबन तो अंत तक (स्पष्ट वेदन होने तक) है।
निरालंब ज्ञान कैसा होता है ? कि कोई चीज़ उसे स्पर्श ही नहीं करती। तब तक आपको शब्द का आधार रहा है।
प्रश्नकर्ता : शब्द का आधार छोड़ने के लिए क्या करना चाहिए?
दादाश्री : अभी नहीं छोड़ना है। शब्दों का आधार कब छूटेगा? जैसे-जैसे ये फाइलें खत्म होती जाएँगी न, वैसे-वैसे अपने आप ही शब्द छूटता जाएगा। जब तक ये फाइलें हैं, तब तक उसकी ज़रूरत है। निकाल तो करना पड़ेगा न? कितनी सारी फाइलें लेकर आए हैं ! उन सभी फाइलों का निकाल कर देना पड़ेगा न! निकाल हो जाने के बाद में उन फाइलों के वापस आने का कोई कारण नहीं रहेगा। आपसे सब फाइलों का निकाल हो पाता हैं?