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आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
प्रश्नकर्ता : उस शुद्धात्मा स्वरूप का अनुभव कब होगा?
दादाश्री : निरंतर हो ही रहा है न! 'मैं चंदूभाई हूँ', वह जो देहाध्यास का अनुभव था, वह अनुभव टूट गया है और अब आत्मा का अनुभव हुआ है। और कौन सा अनुभव? ऐसा ज्ञान अनुभव, यह जब रेग्यूलर स्टेज में आ जाएगा तो फिर उसे आनंद आता जाएगा।
आत्मा का अनुभव कितने घंटे है ? चौबीसों घंटे आत्मा का अनुभव रहता है। पहले यह अनुभव था कि 'मैं चंदूभाई हूँ' और अब यह है 'मैं शुद्धात्मा हूँ', ऐसा अनुभव।
शब्दावलंबन के बाद मोक्ष एक-दो जन्मों में
सापेक्ष अर्थात् दूसरों से अपेक्षा रखने वाली चीजें, वे परावलंबी कहलाती हैं जबकि मुझे किसी का आधार नहीं है, मैं निरालंबी हूँ। ये सभी (महात्मा) परावलंब में से छूट गए हैं लेकिन शब्द का अवलंबन है इन्हें। उन्होंने चिंता रहित मोक्ष के दरवाज़े में प्रवेश कर लिया है, तो उनका मोक्ष होगा ही, एक-दो जन्मों बाद।
निरालंब आत्मा सब से आखिर में है। वहाँ तक यह गाड़ी चलेगी। ऐसा तो मैंने कहा है, शब्दावलंबन से गाडी स्टार्ट होनी चाहिए। शब्दावलंबन अनुभव देता है। हम सभी महात्माओं को अनुभव है लेकिन क्योंकि ये संसारी हैं इसीलिए इन्हें आत्मा का स्वाद नहीं आता, उसकी पहचान नहीं हो पाती। इसमें क्या अंतर है, पता नहीं चलता क्योंकि एक ही बार यदि विषय भोगे तो तीन दिनों तक इंसान की भ्रांति नहीं छूटने देता। भ्रांति अर्थात् डिसिज़न नहीं आ पाता कि यह है या वह ! हमें ऐसी सिरदर्दी नहीं है न! झंझट नहीं है न! दुःख में भी सुख रहता है। आपको भी समझ में आ गया है कि यह अवलंबन वाला आत्मा कहा जाएगा। 'मैं शुद्धात्मा हूँ', वह शब्दावलंबन कहा जाएगा!
आत्मा की खुराक? प्रश्नकर्ता : आपका यह जो वाक्य है कि आत्मा के अलावा हर एक चीज़ खुराक पर टिकी है।