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[६] निरालंब
प्रश्नकर्ता : तो फिर एक्ज़ेक्ट भावना क्या होनी चाहिए? दादाश्री : सूक्ष्म दादा की।
प्रश्नकर्ता : तो फिर ऐसा हुआ कि हम अभी तक दादा को देहधारी के रूप में ही मानते हैं?
दादाश्री : हाँ, ये जो दिखाई देते हैं, आँखों से दिखाई देने वाले को ही दादा मानते हैं। बाकी मूल दादा भगवान अलग हैं। ये जो दिखाई देते हैं, वे दादा अलग हैं और फिर बीच का भाग, सूक्ष्म दादा हैं।
प्रश्नकर्ता : बीच का भाग ही ज्ञानी है ? वे बीच वाले सूक्ष्म दादा, वही ज्ञानीपुरुष का पद है?
दादाश्री : हाँ, जिनका हम निदिध्यासन करते हैं।
प्रश्नकर्ता : आपने जो भावना कहा है, वह कौन सी भावना होनी चाहिए, सूक्ष्म दादा की?
दादाश्री : जब तक निदिध्यासन रहेगा, तब तक किसी तरह की परेशानी नहीं आएगी। अगर इस स्थूल की उपस्थिति को ढूँढोगे तो परेशानी होगी।
प्रश्नकर्ता : और यदि इसी मूर्ति का निदिध्यासन रहेगा तो कोई परेशानी नहीं आएगी?
दादाश्री : फर्स्ट क्लास रहेगा, हाइ क्लास रहेगा। चलता-फिरताबोलता हुआ, सबकुछ रहेगा। अब यह कितने ही लोगों को रहता होगा! अमरीका में भी रोज़ मिलते हैं, कहते हैं न सभी, 'दर्शन होते हैं और हमारा दिन सुधर जाता है'। इस तरह से जब हम नहीं होंगे तब भी सूक्ष्म दादा हज़ारों सालों तक चलेंगे।
प्रश्नकर्ता : मूर्ति का निदिध्यासन सूक्ष्म दादा माना जाएगा?
दादाश्री : जो निदिध्यासन होता है, वह? हाँ, वह सूक्ष्म दादा माने जाएंगे।