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आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
प्रश्नकर्ता: और क्या क्या आता है उसमें ।
दादाश्री : चलते-फिरते, पढ़ते हुए बोलते हुए ...
प्रश्नकर्ता : वह सब तो ये सारी दैहिक क्रियाएँ दिखाई देती हैं।
दादाश्री : नहीं। वे साथ में दिखाई देते हैं इतना ही नहीं, खुद के साथ ही हैं ऐसा लगता है । बातें करते हुए भी दिखाई देते हैं । वह हमेशा के लिए टिकेगा, यह स्थूल नहीं टिकेगा। यह तो श्वास-उच्छवास वाले हैं। उसमें श्वास- उच्छवास नहीं होते ।
प्रश्नकर्ता : वाणी का निदिध्यासन रहता है, वह ? ज्ञानवाणी का चिंतवन रहता है, वह ?
दादाश्री : वह भी निदिध्यासन में ही आएगा । दादा का किसी भी प्रकार का चिंतन हो, वह निदिध्यासन में जाएगा। वे स्थूल रूप से हाज़िर नहीं होंगे तब भी हज़ारों सालों तक हो सकेगा
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प्रश्नकर्ता : आपने कहा है न, इस स्थूल के बाद सूक्ष्म दादा और तीसरा कहा है न?
दादाश्री : भगवान।
प्रश्नकर्ता : उनसे कनेक्शन किस तरह से रखा जा सकता है ?
दादाश्री : भगवान का चिंतन किस प्रकार से हो सकेगा ? वे तो निरंजन - निराकार हैं । कष्ट उठाकर किस प्रकार से हो सकेगा ?
प्रश्नकर्ता : वह कनेक्शन किस तरह से सेट कर सकते हैं ?
दादाश्री : वह तो अंदर से जब सारा कचरा माल निकल जाएगा, उसके बाद फिर दर्शन में आएँगे। हम नहीं कहते कि हमें दिखाई देते हैं, निरालंब । जिन्हें कोई भी अवलंबन नहीं लेना पड़ता । मूल स्वरूप दिखाई देना, हूबहू मूल स्वरूप, जिसे केवलज्ञान कहा गया है, वह । समझ से दिखाई देता है न, और दूसरा ज्ञान से दिखाई देता है।