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[२.४] प्रशस्त राग
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प्रश्नकर्ता : हाँ, बुझाना पड़ता है।
दादाश्री : तो कहेंगे 'अगर बुझाना था तो जलाया क्यों?' प्रशस्त राग बैठाया है न, तो उसे उतारना पड़ा। आपका बैठा नहीं है। आपको बैठाना है। बैठ जाए तो फिर बाहर का राग बंद हो जाएगा, खत्म हो जाएगा फिर यह राग होने के बाद वापस इसमें से निकालना है, खींच लेना है। यह हल ला देगा।
परमार्थ राग से मिलते हैं ज्ञानी प्रश्नकर्ता : आपने जो कहा है न, मैंने पहले प्रश्न पूछा था कि 'अगले जन्म में भी ज्ञानी मिलेंगे?' आपने कहा था 'ज़रूर मिलेंगे'। लेकिन दादा तो ऐसा कहते हैं कि ज्ञानी तो दस लाख सालों में एक बार आते हैं। तो फिर अगले जन्म में कहाँ से मिलेंगे ज्ञानी?
दादाश्री : जिस-जिसने हिसाब बाँध लिया है उन्हें तो मिलेंगे ही न! जिन्होंने उनके साथ हिसाब बाँध लिया है वे। जहाँ राग किया वह छोड़ेगा क्या? मैं मना करूँ फिर भी छूटेगा नहीं और आप मना करोगे तो भी नहीं छूटेगा। इसलिए मैं कहता हूँ न, इसके लिए परेशान मत होना। घबराना नहीं।
प्रश्नकर्ता : दादा ! तो क्या हम लोग पहले मिले होंगे या नहीं?
दादाश्री : हाँ, परमार्थिक राग और सांसारिक राग, इन दोनों के संबंध की वजह से मिले हैं। सांसारिक राग तो रहता ही है, लेकिन परमार्थ के लिए किया गया राग भी राग ही कहलाता है और उस राग के आधार पर परमार्थ पूर्ण होता है। राग नहीं होगा तो? अगर वीतराग हो चुके हो तो मेरे साथ रहकर आपका कोई काम पूरा नहीं होगा। अतः अंत में यह परमार्थ राग कहलाता है। यह प्रज्ञा का राग है। कभी भी बंधन नहीं आने देता और मुक्ति दिलवाता है।