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आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
प्रश्नकर्ता : फिर अगर समता नहीं रहे तो क्या वे परमाणु वापस अशुद्ध ही रहेंगे?
दादाश्री : यदि नहीं रखेगा तो उतने बिगड़ेंगे। प्रश्नकर्ता : और फिर अगर प्रतिक्रमण कर लें तो? दादाश्री : फिर भी बिगड़ जाता है। प्रश्नकर्ता : प्रतिक्रमण करने से धुल जाता है न?
दादाश्री : कचरा रह जाता है। समता जैसा शुद्ध नहीं हो पाता! जो-जो आए, उसे हमें शुद्ध करके निकालना है। एक साथ शुद्ध नहीं हो सकेगा। जितना आएगा, वैसे-वैसे ! दिन उगने के बाद जितना आए उतना शुद्ध । पाँच आज्ञा से सब शुद्ध हो जाएगा। फाइलों का समभाव से निकाल करने से सब शुद्ध हो जाएगा। शुद्ध स्थिति में कब रखा जा सकता है कि जब डिस्चार्ज होते समय उन्हें देखकर' जाने देंगे तो शुद्ध हो जाएँगे। चार्ज करते समय राग-द्वेष किए थे इसलिए अशुद्ध हो गए और अगर डिस्चार्ज करते समय 'देखकर' अर्थात् वीतरागता से जाने दोगे तो शुद्ध हो जाएँगे।
प्रश्नकर्ता : दादा, लेकिन पुद्गल का क्या करना है ? असल वस्तु तो आत्मा है!
दादाश्री : कुछ भी नहीं। आपका ज्ञायक स्वभाव मत छोड़ना। क्या हो रहा है उसे देखते रहो, ज्ञेय को। पुद्गल ज्ञेय है और आप ज्ञायक हो। मन में जो विचार आते हैं, वे सभी ज्ञेय हैं और आप ज्ञायक हो। वे विचार अच्छे हैं या बुरे, वह आपको नहीं देखना है। वे ज्ञेय हैं इसलिए आपको तो उन्हें देखना है। देखने से वे स्वच्छ होकर चले जाते हैं। उन्हें शुद्ध करने की ज़रूरत है। हम शुद्ध हो गए हैं लेकिन उन्हें शुद्ध करेंगे तभी हम मुक्त हो सकेंगे, बस! वे फाइलें हैं।
प्रश्नकर्ता : आपने शुद्धात्मा बताया। अब उसके लिए अन्य कुछ तो रहा नहीं न।