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[४] ज्ञान-अज्ञान
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प्रश्नकर्ता : माने हुए ज्ञान और जाने हुए ज्ञान में क्या फर्क है ?
दादाश्री : जाना हुआ ज्ञान अनुभव सहित होता है और माना हुआ अर्थात् शक्कर मीठी है, ऐसा तू मान लेता है लेकिन मीठी का मतलब क्या समझा? और जाना हुआ अर्थात् फिर से तुझे पूछना ही न पड़े। शक्कर मंगवाएँ अभी? अनुभव करना है? करके देख न, शक्कर का अनुभव कर लिया है ? तो फिर हर्ज नहीं है। वह सिर्फ माना है उसका अनुभव नहीं किया? 'शक्कर मीठी है', ऐसा माना और चखने पर उसे जाना और अनुभव किया।
क्या आया हुआ ज्ञान चला जाएगा? प्रश्नकर्ता : क्या समझ और ज्ञान आकर वापस चले जाते हैं ?
दादाश्री : जो चला जाए उसे ज्ञान नहीं कहा जाएगा। समझ आने के बाद जा सकती है लेकिन ज्ञान नहीं जाता।
प्रश्नकर्ता : अज्ञानता और गलतफहमी एक ही चीज़ है या अलग?
दादाश्री : गलतफहमी तो हो जाती है और बाद में समझ से निकल जाती है लेकिन अज्ञानता नहीं जाती। गलतफहमी की गाँठ तो पड़ने के बाद वापस खुल जाती है। हमारी वह गाँठ तो कोई निकाल देगा लेकिन अज्ञानता तो ज्ञानीपुरुष के बिना नहीं जा सकती।
प्रश्नकर्ता : अज्ञान किस तरह से निकल सकता है?
दादाश्री : ज्ञानी के पास जाने से अज्ञान निकल जाता है। यदि हम ज्ञानी के पास जाएँ और हमारा अज्ञान नहीं निकले तो फिर वह ज्ञानी है ही नहीं। यह उसका प्रमाण है। इसलिए ऐसा कहा गया है न कि ज्ञान ज्ञानी से ही प्राप्त होना चाहिए!
प्रश्नकर्ता : इन सभी की जड़ अज्ञान है या मोह ?
दादाश्री : अज्ञान में से ही मोह आता है। अज्ञान जितना कम होता जाता है न, उतना ही मोह कम हो गया, ऐसा कहा जाएगा। इसकी