________________
२५६
आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
अनुभव तो शुरुआत से ही हो जाता है। संपूर्ण रूप से अलग न हो जाए तब भी उसे प्रतीति बैठ जाती है और एक तरफ प्रज्ञा शुरू हो जाती है। अज्ञान से परिग्रह, परिग्रह से उलझन, ज्ञान से सुलझता है
हर एक उलझन के हल के पीछे एक ज्ञान रहा हुआ है। यह दुनिया उलझनों का ही स्टॉक है। एक ही ज्ञान से सभी उलझनें नहीं सुलझतीं। ज्ञान के बिना तो उलझनें सुलझ ही नहीं सकतीं न!
प्रश्नकर्ता : वह तो, जब सुलझता है तब लेकिन उलझते समय क्या होता है?
दादाश्री : वे उलझनें अज्ञान से होती हैं वर्ना होंगी ही नहीं न! और उलझनें ज्ञान से सुलझ जाती हैं। जब उलझनें सुलझती हैं तो फिर समाधान हो जाता है और मन मुक्त हो जाता है। मन उलझनों में से मुक्त होता जाता है।
___ अज्ञान से परिग्रह बढ़ते जाते हैं और परिग्रह से उलझनें बढ़ती जाती है और ज्ञान से फिर उलझनें सुलझ जाती हैं और फिर परिग्रह छूट जाते हैं।
प्रश्नकर्ता : क्या परिग्रह ज्ञान और अज्ञान पर आधारित हैं ?
दादाश्री : हं । ज्ञान, अज्ञान और परिग्रह । अज्ञान से परिग्रह उत्पन्न होते हैं और जैसे-जैसे ज्ञान से उलझनें सुलझती जाती हैं वैसे-वैसे परिग्रह कम होते जाते हैं।
गतज्ञान के आधार पर पराक्रम
आपको अभी ज्ञान मिला है। अगले जन्म में पराक्रम उत्पन्न होगा। यह जो दादा का पराक्रम है, वह गतज्ञान का पराक्रम है। आपको जो यह ज्ञान मिला है, उसका पराक्रम अगले जन्म में आएगा। तब तक पराक्रम उत्पन्न नहीं होगा। तब तक वह परिणामित नहीं होगा। जब परिणामित होगा तब वह फल देगा।