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[5.2]
चारित्र
वीतरागों का यथार्थ व्यवहार चारित्र
प्रश्नकर्ता : जीवन में जो सदा बर्ते, उस चीज़ को हम चारित्र कहते हैं न ! इसमें आत्मज्ञान की बात यानी आत्मा का ज्ञान हमेशा बर्ते तो उसे ' चारित्र में आया' कहा जाएगा ?
दादाश्री : चारित्र दो प्रकार के । एक, यह व्यवहार चारित्र । बहुत उच्च कोटि के व्यक्ति का व्यवहार चारित्र उच्च प्रकार का होता है । व्यवहार चारित्र क्या होता है ? जो चारित्र पूरा ही तीर्थंकरों की आज्ञानुसार होता है, वह व्यवहार चारित्र कहलाता है । वह पूरा चारित्र देह का है लेकिन इससे कहीं ज्ञान नहीं हुआ है। और दूसरा, आत्मा का चारित्र। आत्मा का चारित्र है, देखना - जानना और परमानंद । ज्ञात- दृष्टा, परमानंदी, बस ! राग-द्वेष नहीं। और वह व्यवहार चारित्र अर्थात् तीर्थंकरों की आज्ञा में रहना, पूर्णतः आज्ञा में रहना ।
बाहर जिस चारित्र का पालन करते हैं, उसे चारित्र नहीं कहा जाएगा। उसे व्यवहार चारित्र नहीं कहेंगे । व्यवहार चारित्र कब कहा जाएगा? वीतराग मार्ग में हो, तभी । ये तो गच्छ - मत में पड़े हैं । गच्छमत यानी अन्य लोग जिस तरह से चारित्र का पालन करते हैं, वे सभी त्यागी कहलाएँगे, लेकिन उसे चारित्र नहीं कहा जाएगा। व्यवहार चारित्र कब कहा जाएगा? जो वीतराग मार्ग में है, वह किसी धर्म को पराया नहीं मानता लेकिन फिर भी वीतराग धर्म को खुद का ध्येय मानता है । कौन सा ध्येय रखता है ? वीतराग धर्म । वीतरागों को मान्य रखता है और अन्य किसी को अमान्य नहीं करता । किसी के भी प्रति द्वेष नहीं