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[६] निरालंब
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तक उसे सही अवलंबन नहीं मिल जाता, जब तक त्रिकाली अवलंबन, यह सनातन अवलंबन नहीं है, तब तक जीने का आधार ही नहीं है न! लोगों को देखकर जीवित रहता है। वह देखता है कि 'देखो! कितने सारे लोग हम से भी ज्यादा दुःखी हैं, ऐसा है, वैसा है...'। उस आधार पर जीवित रहता है न फिर। अतः यह जगत् बहुत बड़ा अवलंबन है लेकिन ये सभी आधार विनाशी हैं। वह आधार जब चला जाता है तब वापस मन ही मन उलझन में पड़ जाता है।
सिर्फ ज्ञानीपुरुष ही आधारित नहीं हैं। निरालंब हैं। कोई आलंबन नहीं। जगत् अवलंबन से जीवित है, आधार से जीवित है। जब वह आधार निराधार हो जाता है तब कल्पांत करता है। ज्ञानीपुरुष खुद एब्सल्यूट हो चुके हैं इसलिए उन्हें आधार-आधारित संबंध नहीं रहे। एब्सल्यूट ! भले ही जगत् कल्याण की यह भावना रह गई है लेकिन खुद हो तो चुके हैं एब्सल्यूट ! एब्सल्यूट अर्थात् निरालंब। उन्हें किसी अवलंबन की ज़रूरत नहीं है! स्वतंत्र केवल! केवल ही, अन्य कोई मिक्स्चर नहीं।
दुनिया में कौन सा आधार शाश्वत है? पहले किस आधार पर जी रहे थे?
प्रश्नकर्ता : मन की इच्छाएँ।
दादाश्री : वे सभी आधार गलत थे। वे कब निराधार हो जाएंगे, कहा नहीं जा सकता क्योंकि कोई भी अपना नहीं बनता न? इस जगत् में कोई भी कभी भी अपना नहीं बन सकता। कुछ समय में जब कोई मतभेद हो जाए तो अलग। और मतभेद होने में देर ही नहीं लगती न! अतः ये सब आधार गलत हैं। सिर्फ खुद के शुद्धात्मा का आधार ही सच्चा है और यदि वह प्राप्त हो जाए तो शांति ही रहेगी न? बाकी इन आधारों से तो लोग मार खा-खाकर थक चुके हैं। इसीलिए परेशान हो गए हैं न लोग। कितने ही लोग पैसों का आधार लेते हैं। पैसों के आधार पर जीवित रहते हैं ? पैसा कब अलोप हो जाएगा, वह कहा नहीं जा