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निरालंब आधार-आधारित के संबंध से टिका है संसार
भयंकर दुःखों में दुःखी-दुःखी हो गए हैं लेकिन किस आधार से जी रहे हैं ? उसका कोई आधार तो होगा न? वह बाहर निकलने के बाद कहता है, 'मैं इन सब से बड़ा हूँ, बस'। उसी आधार से जी रहे हैं। आधार तो होना चाहिए न जीने का! सभी लोग आधार से जी रहे हैं। किस आधार से जी रहे हैं ? 'इन मज़दूरों से हम सुखी हैं।' ये जो आदिवासी होते हैं न, मैंने कहा, 'आप किस आधार से जी रहे हो? आपका कछ...?' 'मैं चार गायों का मालिक हँ।' 'हे! चार गायें, दोतीन बछड़ों का मैं मालिक हूँ!' इतने आधार से जी रहे हैं सभी।
किसी न किसी का आधार रखते हैं। अहंकार का आधार रखते हैं, रूप के आधार से, कोई सगे-संबंधियों का आधार रखते हैं, कोई विषय का आधार, या किसी अन्य चीज़ के आधार से सब जी रहे हैं। तो और किस आधार से जी रहे हैं? खाना खाने से तो देह जीवित रहता है, मन किस आधार से जीवित रहता है ? इन सभी अवलंबनों से ही जीवित रहता है। बुद्धि किस आधार पर जीवित रहती है? जो उसकी खुराक है, उससे जीवित रहती है लेकिन अगर सनातन अवलंबन होगा तो कभी भी नहीं छूटेगा। आप ज्ञान लेने से पहले सभी प्रकार के अवलंबन लेते थे। जहाँ पर अवलंबन रखते हैं, वहाँ पर तो अगर विधवा हो जाए तो भी रोने बैठ जाती है। किसी न किसी पर आधार रहता है उसका! जब आधार छूट जाता है तब फिर वह ऐसे अहंकार से जीवित रहता है, 'ओहो, इन सब से तो मैं बेहतर हूँ'। रोज़ जीए किस आधार पर? जब