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आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
दादाश्री : यह यथाख्यात चारित्र तो, सम्यक् चारित्र पार हो गया तो कौन सा आया ? यथाख्यात आया । 99 हो तो वह आपको 100 का नोट नहीं देता। 99 पर 99 पैसे होते हैं फिर भी 100 का नोट नहीं देते। अतः यथाख्यात 100 का नोट है और बाकी का सारा 99, 98 ... पहले सम्यक् चारित्र है, उसके बाद यथाख्यात और उसके बाद वीतराग चारित्र ।
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प्रश्नकर्ता : अब इन सभी के लक्षण क्या हैं ? यह जो यथाख्यात चारित्र है, सम्यक् चारित्र है और केवलचारित्र है, उनके लक्षण क्या हैं?
दादाश्री : महात्माओं में केवलचारित्र नहीं है । सम्यक् चारित्र है! अर्थात् हमें तो आगे जाकर वीतराग चारित्र ही आएगा। यहाँ पर यथाख्यात नहीं है। गिरता है-खड़ा होता है, गिरता है - खड़ा होता है और जब वह गिरना बंद हो जाएगा तब वह यथाख्यात कहलाएगा। जैसे कि एक बच्चा गिरता है-खड़ा होता है, गिरता है - खड़ा होता है, उसके बाद उसका गिरना बंद होने लगता है । तब यथाख्यात हो गया ।
प्रश्नकर्ता : गिरना बंद हो जाए तो यथाख्यात । तो क्या उसमें वीतरागता अधिक स्थिर हो जाती है ?
दादाश्री : वीतरागता तो जब यथाख्यात चारित्र उत्पन्न होता है तभी हो सकती है, वर्ना तब तक नहीं हो सकती।
प्रश्नकर्ता : तो फिर सम्यक् चारित्र में क्या-क्या होता है ?
दादाश्री : बच्चा गिरता है, वापस खड़ा होता है। गिरता है-खड़ा होता है लेकिन क्योंकि वह खड़ा हो जाता है इसलिए उसे सम्यक् चारित्र कहा गया है। फिर जब खड़ा रहने के बाद खड़ा ही रहे और जब वह औरों की तरह ही चलने लगे, तो फिर यथाख्यात ।
अंतर, केवल और सम्यक् चारित्र में
प्रश्नकर्ता : केवलचारित्र और सम्यक् चारित्र में क्या अंतर है ? दादाश्री : सम्यक् चारित्र जगत् के लोग देख सकते हैं और