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[६] निरालंब
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दादाश्री : नहीं। छोड़ना-करना वगैरह कुछ है ही नहीं, रहने देना है। वे व्यवहार से गुरु हैं। स्त्री को नहीं छोड़ना है, व्यवहार को नहीं छोड़ना है, गुरु को नहीं छोड़ना है और निश्चय में निश्चय के गुरु बनाने हैं।
प्रश्नकर्ता : एक खास स्टेज पर पहुँचने के बाद गुरु का भी अवलंबन छोड़ देना पड़ेगा न?
दादाश्री : नहीं, वह तो अपने आप ही छूट जाएगा, छोड़ना नहीं पड़ेगा। छोड़ने से तो तिरस्कार होगा। यह तो सहज रूप से छूट जाएगा।
योगी को किसका अवलंबन? प्रश्नकर्ता : योगी को भी अवलंबन रहते हैं न?
दादाश्री : हाँ, अवलंबन वाला ही योगी कहलाता है। आत्मयोगी अवलंबन वाले नहीं होते, निरालंब होते हैं। उन्हें दुनिया में किसी भी अवलंबन की ज़रूरत नहीं है। आत्मयोगी को भगवान की भी ज़रूरत नहीं रहती क्योंकि वे खुद ही भगवान बन चुके होते हैं। आत्मयोगी हुए, तभी से खुद भगवान बन जाते हैं। उन्हें किसी की ज़रूरत ही नहीं रहती।
प्रश्नकर्ता : आत्मा और फिर साथ में योगी शब्द आया, तो उसे अवलंबन की ज़रूरत तो पड़ेगी ही न?
दादाश्री : नहीं, आत्मयोगी तो पहचानने के लिए कहते हैं कि इनका योग किसमें है ? मन-वचन-काया हो और आत्मा प्राप्त हो जाए, वे दोनों साथ में होते हैं। तो यह योग कहाँ है ? बाहर है या आत्मा के साथ में है? आत्मा के साथ में होगा तो आत्मयोगी कहलाएगा। अपने कृष्ण भगवान आत्मयोगेश्वर कहलाते हैं। आत्मयोगेश्वर! वे देहयोगेश्वर, वचनयोगेश्वर या मनोयोगेश्वर नहीं कहलाते। बाकी ये सब जो हैं वे सभी मन के और वचन के योगी हैं। इससे थोड़ी बहुत शांति हो जाती है लेकिन पूर्ण कल्याण नहीं हो सकता।