________________
२८२
आप्तवाणी-१३ (उत्तरार्ध)
प्रश्नकर्ता : कोई भी चीज़ गुह्य हो तब... उसका रिजल्ट आता है लेकिन उसका कारण पता नहीं चलता तब गुह्य कहा जाता है।
दादाश्री : नहीं नहीं! ऐसा नहीं है। कारण वाला सारा ज्ञान सांसारिक ज्ञान है, भौतिक ज्ञान है। जिनके पीछे कोई कारण होता है। कारण का पता नहीं चलता इसलिए उसे ज्ञान का पता नहीं चलता। हाँ, लेकिन गुह्यतम अर्थात् क्या कहना चाहते हैं, गुह्यतम यानी जो ज्ञान जगत् के लक्ष से बाहर ही है। इसमें भौतिक का प्रश्न ही नहीं है। यह सारा ज्ञान भौतिक ही है और जो है वह पपीता जैसा है। (नर) पपीता का पेड़ फल नहीं देता, वह शुष्क ज्ञान है और यह जो गुह्य ज्ञान है, वह शुष्क नहीं है। जीवंत है, सजीव है। बाकी के जो कारण और कार्य के ज्ञान हैं, वे सब निर्जीव हैं। यह सजीव है। भीतर आपको सचेत करता है न, यों मेरे साथ बैठने के बाद? पहला गुह्य ज्ञान, जो मैंने पहले दिन दिया था, फिर धीरे-धीरे भीतर गुह्यतर उत्पन्न होने लगा और जितना गुह्यतर हो गया, उसमें आपका चारित्र बर्तता है, वह गुह्यतम है। आगे का जितना नहीं हुआ है, उतना बाकी है। उसके बाद इस चारित्र की पूर्णाहुति होगी।