________________
३०८
आप्तवाणी - १३ (उत्तरार्ध)
तब माना जाएगा कि सम्यक् चारित्र बर्ता
प्रश्नकर्ता : हमने कोई ऐसी चीज़ देखी, जिस पर हमारा ध्यान नहीं जाना चाहिए, वहाँ पर अपना ध्यान चला जाए, तो उस समय भले ही ध्यान चला गया लेकिन उसे हमने अलग देखा, और उसे वापस मोड़ सके और उसकी वजह से कोई कार्य न हो पाए तो अब वह किसका चारित्र है, कैसा चारित्र है ?
I
दादाश्री : वही सच्चा आत्मचारित्र है । वही चारित्र कहलाता है। भगवान ने इसी को तो सम्यक् चारित्र कहा है।
प्रश्नकर्ता : सम्यक् चारित्र भाव स्वरूप से है, द्रव्य तो नहीं है
न ?
दादाश्री : हाँ। वह भाव स्वरूप अर्थात् हम ज्ञाता - दृष्टा और वह ज्ञेय हो जाए तो वह सम्यक् चारित्र । उतना आपका सम्यक् चारित्र में जमा होगा और उस समय मान लो कि यह ज्ञान दिया हो लेकिन सम्यक् चारित्र न भी रहे क्योंकि एविडेन्स हैं न पिछले । एविडेन्स हैं इसलिए मिथ्या चारित्र हो गया तो आप यदि उसके जानकार रहो तो मिथ्या चारित्र का जोखिम ज़्यादा नहीं आएगा। यदि अतिशय तन्मयाकार हो जाओ, मूर्च्छित भी हो जाओ तो गलत कहलाएगा। अपना ज्ञान ऐसे मूर्च्छित भाव करवाने वाला नहीं है। इसलिए ज्ञाता - दृष्टा रहना है । यह तो ऐसा है कि ज्ञाता-दृष्टा रहता है फिर भी ज्ञेय में ज्ञेयाकार कर देता है। उस समय सम्यक् दर्शन है लेकिन सम्यक् चारित्र नहीं है । अर्थात् यह कि पूरा पलटा नहीं है। चारित्र कब जमा होगा ? जब यहाँ पर वर्तन में आएगा तब जमा होगा।
परख चारित्र बल की
प्रश्नकर्ता : ऐसा कब कहा जाएगा कि चारित्र बलवान है ? उसका टेस्ट क्या है ?
दादाश्री : किसी के साथ टकराव न हो । किसी जगह पर अपना